राष्ट्रवाद बनाम अन्तर्राष्ट्रवाद
पर हर राष्ट्र एक समान है भविष्य की यही राह है
इस विषय को अगर हम ऊपर से देखें तो इसमें दो ही प्रमुख पहलू नजर आएंगे एक है राष्ट्रवाद जो कि स्वदेश प्रेम से जुड़ा एक विचार है। दूसरा प्रमुख पहलू है अन्तर्राष्ट्रवाद जो की कल्पना है एक वैश्विक नागरिक की जिसमें स्वदेश प्रेम के साथ साथ विश्व के अन्य देशों के प्रति सम्मान भी हो। लेकिन इन दो प्रमुख पहलुओं के अतिरिक एक और महत्त्वपूर्ण पहलू भी है और यह तीसरा पहलू है इनके आपसी सम्बन्ध का जी हाँ चाहे वह सम्बन्ध एक दूसरे के साथ हो या एक दूसरे के विरोध में हो। मैं यहां इस मंच पर बात इन दोनों ही पहलुओं की करूँगा। चूँकि एक के बिना दूसरा तो दूसरे के बिना पहला न तो समझा जा सकता है और न ही व्यवहारिक है।
सर्वप्रथम हम इसके पहले पक्ष की बात करते हैं,
राष्ट्रवाद व अन्तर्राष्ट्रवाद इन दोनों का आपस में गहन सम्बन्ध है। राष्ट्रवाद जहाँ किसी को भी अपने देश की खातिर अपनी जान तक की बाजी लगा देने के लिए उत्सुक कर देता है तो वहीं अन्तर्राष्ट्रवाद आज के इस परमाणु बम ये दौर में विश्व शांति व सौहार्द का भाव भरता है। राष्ट्रवाद जहां हर नागरिक को अपने वतन से मोहब्बत सिखाता है तो अंतरराष्ट्रवाद पूरी दुनिया, पृथ्वी व इस मानव जाती से प्रेम की अनुभूति सिखाता है। दोनों की इस दुनिया में एक बराबर जरूरत है।
अगर इसका दुसरा पक्ष हम देखें तो यह खतरनाक ही नहीं ख़ौफ़नाक है न केवल मानव के लिए अपितु मानवता के लिए भी। इसके चलते हो सकता है कोई एक देश तो मंगल की और चल पड़े लेकिन बाकी की दुनिया जंगल की और ही जायेगी और यह तय है। अगर इन दोनों को एक दूसरे के विरोध में देखने की गलती हम करते हैं तो इससे नागरिक देशभक्त नहीं अंधभक्त पैदा होंगे। उनका विकास तो होगा लेकिन मानवता का विनाश ही होगा। इसका एक तात्कालिक उदाहरण हमारे समक्ष उत्तर कोरिया के एक सनकी तानाशाह के रूप में मौजूद है। जिसने देशभक्ति की तेज रौशनी से अपने ही देश के नागरिकों की आँखें चौन्धिया दी हैं। ऐसे में वे व्ही देख सकते हैं जो उनका मालिक कहे और व्ही सुन सकते है जिसकी इजाजत उनका मालिक दे।
अगर हम राष्ट्र के इतिहास को भी उठा कर देखें तो हम पाएंगे की राष्ट्र नागरिकों के लिए बना है, इसे नागरिको ने बनाया है और इसका लक्ष्य शांति व विकास है। ऐसे में इसके मूल लक्ष्य को हाशिये पे रख कर हम इसके निर्माण की उस भावना का ही कत्ल अगर कर दें तो यह किस हद तक जायज ठहराया जा सकता है।
अपने वतन से प्रेम , उसकी रक्षा के लिए बलिदान, उसके निर्माण के लिए आहुति, उसके मान सम्मान की परवाह करना और सबसे बढ़कर देश के लिए अपना सर्वस्व तक न्योछावर करना ये है राष्ट्रवादी की पहचान। लेकिन अन्य देशों से घृणा, उनपर जबरन आक्रमण, उनको अंदर से खोखला करने की घिनोनी साजिशें रचना, हर समय उनका अहित सोचना और अपने दुःख से दुखी न होकर उनके सुख से दुखी होना है मानवता पर कलंक होना।
मेरा देश सबसे अच्छा है यह देशभक्ति है राष्ट्रवाद है
लेकिन मेरा देश ही अच्छा है बाकी सब बुरे यह मूर्खता है
राष्ट्रवाद यानि अपने राष्ट्र से प्यार
अन्तर्राष्ट्रवाद यानि सम्पूर्ण विश्व के देशों के प्रति सम्मान
विश्व के अन्य देशों की प्रभुसत्ता उनकी अखण्डता का आदर उनकी स्वायत्ता का सम्मान, पुरे विश्व को एक परिवार मानना यही अन्तर्राष्ट्रवाद है।
आज के समय में हर देश एक दूसरे पर निर्भर है कोई भी देश अपने आप में अहम ब्रह्म अस्ति नहीं है यानि स्वयंभु नहीं है ऐसे में एक दूसरे के सांझे हितों की रक्षा करना व परस्पर सहयोग से आगे बढ़ने का नाम ही अन्तर्राष्ट्रवाद है।
वर्तमान में सभ्य नागरिक होने के दायरे विस्तृत हो चुके हैं, आज के वैश्विक परिपेक्ष्य में अपने देश से प्यार करने वाले नागरिक का तो स्थान है लेकिन अंध प्यार या बिना सोचे समझे प्यार करने वाले का स्थान नहीं।
आज अगर स्थान है तो ऐसे नागरिक का जिसमें भाव हो वसुधैव कुटुम्बकम का। वो भाव जो कि प्राण रहा है भारत की चिरकालीन पुरातन परंपरा का। अतः अंत में यही कह कर अपनी वाणी को विराम देता हूँ की...
हर राष्ट्र जुड़ा है इक दूजे से घनिष्ठ
मेरे तेरे का नहीं हमारे का भाव यहां है समाविष्ट
जय हिन्द...
Jeevan singh tgt non medical GSSS HIMGIRI distt chamba himachal pradesh

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