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Thursday, 27 March 2025

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षक युद्धवीर टंडन का लेख समुद्र पार सिंगापुर में कैसा है शिक्षा का विस्तार ... पढ़िए ऑनलाइन शैक्षिक ई पत्रिका शिक्षा वाहिनी में।

समुद्र पार सिंगापुर में कैसा है शिक्षा का विस्तार ...


सिंगापुर समुद्र से घिरा दक्षिण पूर्व एशिया का एक सम्प्रभु द्वीप समूह है| इसका क्षेत्रफल (710.2 वर्ग किलोमीटर) इतना छोटा है कि इसे कई बार नगर राज्य भी कह दिया जाता है| भौगोलिक दृष्टि से बात करें तो यह देश भूमध्य रेखा के उत्तर में एक डिग्री अक्षांश पर स्थित है| इस देश के क्षेत्र में एक मुख्य द्वीप, 63 छोटे उपग्रह द्वीप और एक बाहरी द्वीप समूह है| विश्व में इसका जनसंख्या घन्त्त्व तीसरा सबसे अधिक है| सिंगापुर एक बहुसंस्कृति, बहुभाषी, बहुजातीयता वाला राष्ट्र है| इस देश में अंग्रेजी, मलय, मंदारिन और तमिल भाषा बोलने वाले बहुतायत में हैं| अंग्रेजी जहाँ इसकी प्रथम भाषा है तो वहीं मलय इसकी अधिकारिक भाषा है| 

सिंगापुर का अधिकारिक नाम सिंगापुर गणराज्य है| इस देश के इतिहास की बात की जाये यह मात्र एक सहस्त्राब्दी ही पुराना है जो कि हिमाचल के चम्बा जिला से भी कम होगा| इसकी स्थापना दिल्ली से ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी के रूप में कम्पनी का व्यापर बढ़ाने 1819 में सिंगापुर भेजे गए एक अधिकारी सर स्टेमफोर्ड रेफल्स ने की थी| वैसे तो सिंगापुर अंग्रेजों, जापानियों एवं मलेशिया का गुलाम रहा है लेकिन इसको इसकी वास्तविक स्वतन्त्रता 1965 में मलेशिया से मिली है| एक किंवदन्ती के अनुसार 14वीं शताब्दी में सुमात्रा द्वीप का एक हिन्दू राजकुमार/राजा जब शिकार करने इस द्वीप पर आया तो उसे सर्वप्रथम जो जानवर यहाँ दिखाई दिया वो सिंह था और इसी के चलते इस देश का नाम संस्कृत भाषा में सिंगापुरा पड़ गया और सिंगापुर इसी का अपभ्रंश है जो कि आज प्रचलन में है|

सिंगापुर विश्व की शीर्ष 10 एवं एशिया की शीर्ष 5 अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है| लेकिन बात अगर यहाँ के संसाधनों की करें प्रक्रति ने सिंगापुर को अगर संसाधनों के नाम पर कुछ दिया है तो वो है मानवीय संसाधन| यहाँ पर न ही कोई बड़ी नदी है, न पर्वत और न ही झरना या झील| यहाँ पानी मलेशिया से, दूध,फल, सब्जियाँ न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया से, दाल-चावल सहित अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं थाईलैंड व इंडोनेशिया से आयात की जाती हैं| यहाँ से यह बात समझ में आती है कि आखिर क्यों सिंगापुर में शिक्षा को सबसे ज्यादा तरजीह दी जाती है| सिंगापुर में उपलब्ध एकमात्र संसाधन जो कि मानव संसाधन के विकास पर शिक्षा के रूप में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20% खर्च किया जाता है| यह सम्भवतः किसी भी देश द्वारा किया जाने वाला सबसे अधिक निवेश है| सिंगापुर में उक्ति बहुत प्रसिद्ध है ‘राष्ट्र की सुरक्षा आज के लिए और राष्ट्र की शिक्षा कल के लिए’| यही करण है कि आर्थिक सहयोग एवं विकास सन्गठन (OECD) द्वारा प्रायोजित अन्तर्राष्ट्रीय छात्र मुल्यांकन कार्यक्रम (PISA) में सिंगापुर का स्थान बीते काफी समय से सर्वोच्च रहा है| 

सिंगापुर के शिक्षा में इस उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए ही हाल ही में हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग द्वरा एक उत्कृष्ट पहल करते हुए प्रदेश के 60 शिक्षकों के दल को सिंगापुर देश के शैक्षिक भ्रमण पर भेजने का प्रशंसनीय कार्य किया गया| शिक्षकों के इस दल को स्वयं प्रदेश के शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर द्वारा शिमला से रवाना किया गया| इस भ्रमण हेतु शिक्षक के रूप में मेरा भी चयन हुआ और मुझे इस शैक्षिक भ्रमण का अवसर मिला| भ्रमण पर जाने से पूर्व पढ़े उपलब्ध साहित्य एवं भ्रमण के दौरान किए अनुभवों के आधार पर ही मैं इस लेख को लिख रहा हूँ| सिंगापुर एक विकसित राष्ट्र है और उसके विकास में सबसे बड़ा योगदान उसकी विकसति एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली का है| लेकिन यहाँ इस बात का जिक्र करना अनिवार्य है कि उनकी शिक्षा प्रणाली में हुआ यह विकास एकाएक नहीं आया है इसका एक लम्बा एवं रोचक सफर रहा है| इस सफ़र के साक्षी बने वहाँ के शिक्षक, शिक्षार्थी, अभिभावक एवं सम्पूर्ण शिक्षा ढाँचा| आज जब हम इस सफर के परिणाम देखते हैं तो हमें देखने को मिलती है एक सुदृढ़, स्वावलम्बी एवं समृद्ध शिक्षा प्रणाली| 

सिंगापुर के प्राथमिक विद्यालयों में आधुनिक सुचना एवं प्रौद्योगिक के साथ परम्परागत शिक्षण तकनीकों को मिलाकर शिक्षार्थियों को शिक्षा प्रदान की जाती है| इस शिक्षा में रटंत ज्ञान को स्थान नहीं है यहाँ बच्चों को अनुभवात्मक अधिगम करवाने, अधिगम को उद्देश्य से जोड़ने एवं दैनिक जीवन के लिए उपयोगी बनाने पर बल दिया जाता है| यहाँ शिक्षक का कार्य शिक्षा को अध्यापक केन्द्रित शिक्षा प्रणाली से कम शिक्षण अधिक अधिगम (TLLM) की तरह ले जाना है| बच्चों को अध्यापक निर्भर अधिगमकर्ता से आत्म निर्देशित अधिगमकर्ता बनाना है| ताकि वे अपने सीखने के निर्णय स्वयं ले सकें व इन निर्णयों के लिए किसी अन्य पर निर्भर न रहें| यहाँ इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि शिक्षार्थी को पढ़ते समय यह ज्ञात रहे कि वो किसी भी विषय का कोई भी संप्रत्य क्यों पढ़ रहा है तथा इसको पढ़ने का उसके दैनिक जीवन में क्या लाभ है| सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य उसके नागरिकों को भविष्य में होने वाले बदलावों के लिए तैयार करना है ताकि वे उनके देश के एक सामर्थ्यवान एवं जिम्मेवार नागरिक बन सकें| अगर सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली में बाल मनोविज्ञान की बात करें तो वे लेव वैगोत्स्की, जॉन डेवी, कैरोल गिलिगन, अब्राहम मैस्लो, प्याजे व एरिक्सन सरीखे मनोविज्ञानियों की झलक देखने को मिलती है| इनमे से वैगोत्स्की जहाँ बच्चों को स्काफोल्डिंग के माध्यम से सीखाने पर बल देते हैं और शिक्षक का कार्य बच्चे को उसके ‘जोन ऑफ़ प्रोक्सिमल डेवलपमेंट’ या विकास के समीपस्थ क्षेत्र तक पहुँचाने की पैरवी करते हैं तो वहीं जॉन डेवी अपनी प्रगतिशील शिक्षा के सिद्धांत पर बल देते है जिसमें बच्चे को औपचारिक शिक्षण की जगह अनुभव आधारित शिक्षा देना प्रमुख लक्ष्य रहता है| सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली बच्चों के शिक्षण में अब्राहम मैस्लो के आवश्यकता के पदानुक्रम पर बल देते हैं तथा सिखाना शुरू करने से पूर्व सीखने के लिए आवश्यक सभी पूर्व उपयोगी शर्तों की आपुर्ती को सुनिश्चित करते हैं| यानि यहाँ की शिक्षा प्रणाली पुर्णतः नवीनतम मनोवैज्ञानिक मापदंडो पर आधारित है| अगर बात करें यहाँ के शैक्षिक दर्शन की तो इसका पूर्व में झुकाव व्यवहारवाद की तरह रहा लेकिन वर्तमान में यहाँ रचनावाद अपनी जड़े फैलता नजर आ रहा है| जिसका प्रमाण यहाँ की बाल केन्द्रित शिक्षा, शिक्षार्थियों का ज्ञान निर्माण में सहयोगी होना, अनुभव आधारित प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षार्थियों की अधिगम में सहभागिता का बढना है| सिंगापुर में पढ़ाई का उद्देश्य बच्चों की तार्किक क्षमता को विस्तार देना है| 


एक अन्य कारण जिससे वहाँ की शिक्षा प्रणाली बेहतर हो पाई है वहाँ का विधान है जिसके तहत सिंगापुर के सभी नागरिकों को अपने बच्चों को वहाँ से सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ाई करवानी पढ़ती है| जब किसी भी देश या समाज की बहुतायत जनसंख्या सरकारी विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रही हो तो वहाँ की शिक्षा प्रणाली का सुदृढ़ होना स्वभाविक हो जाता है तथा सिंगापुर भी इसका अपवाद नहीं| वहाँ के सभी विद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागु है जिससे देश के समस्त बच्चे एक समान शिक्षण प्राप्त करते हैं| प्रत्येक विद्यालय का प्रत्येक कक्ष आई.सी.टी. उपकरणों से सुसज्जित है| वहाँ के शिक्षक भी अतिभारित हैं लेकिन गैर शैक्षिक कार्यों से नहीं बल्कि शैक्षिक कार्यों से| शिक्षक स्वेच्छा से अतिरिक्त समय देकर बच्चों को अपने विषय से अतिरिक्त पढ़ाने व सिखाने का प्रयास करते हैं| वहाँ प्राथमिक शिक्षा को बहुत ज्यादा महत्त्व दिया जाता है चूंकि यही एक विद्यार्थी के जीवन की नींव है| इसी के चलते वहाँ प्राथमिक विद्यालयों में विषयवार शिक्षक हैं| सिंगापुर में एक शिक्षक की व्यवसयिक स्थिति बहुत सुदृढ़ है| 

सिंगापुर में भाषायी विविधता विद्यमान है| मलय वहाँ की राष्ट्र भाषा होते हुए भी वहाँ की प्रथम भाषा अंग्रेजी है| इतना ही नहीं वहाँ के स्थानीय निवासी विभिन्न राष्ट्रों यथा चीन, भारत, मलेशिया एवं अन्य से आकर बसे होने के चलते अंग्रेजी भाषा को सिखाना वहाँ भी चुनौतीपूर्ण कार्य था| लगभग दो तीन दशक पहले वहाँ के निति निर्माताओं ने इस समस्या के समाधान के लिए अंग्रेजी को शिक्षा के माध्यम की भाषा बना दिया| जिसके आज सकारात्मक एवं चिंताजनक दोनों तरह के परिणाम सामने आ रहे हैं| सकारात्मक रूप से यदि सोचा जाए तो अब सिंगापुर के बच्चे अंग्रेजी में सहज नजर आते हैं यहाँ तक की अभिभावक भी अब मातृभाषा को भूल रहे है वे बच्चों के साथ अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य भाषा में वार्तालाप करने में झिजकते हैं| इससे वहाँ अपने अपनी माँ बोली के संरक्षण की चुनौती घर कर रही है| अतः यह हिमाचल जैसे राज्य के लिए एक चिन्तन का समय है चूंकि हम भी प्राथमिक शिक्षा में अंग्रेजी को अपना शिक्षण का माध्यम बना चुके है तो हमें इसके साथ ऐसे ठोस कदम भी उठाने होंगे जिससे कि हमारी मातृभाषा का संरक्षण सुनिश्चित हो सके| इसके साथ ही प्रारम्भिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन जैसे विषय को जिसका सम्बन्ध बच्चे के भावात्मक एवं गतिक विकास से अधिक है को भी मातृभाषा में ही सिखाने पर बल देना चाहिए| गणित एवं विज्ञान विषय के लिए अंग्रेजी भाषा को सम्प्रेष्ण का माध्यम बनाया जा सकता है| 

सिंगापुर में प्रत्येक विद्यालय में अधिगम का वातावरण बनाने का खास ख्याल रखा जाता है| जिसके लिए हर विद्यालय में उद्देश्य वाक्य, दृष्टि वाक्य एवं मूल्यों को विद्यालय की दीवारों पर चिह्नित किया जाता है विद्यालय की पूरी दीवारें बोलती हैं, पुस्तकालय की सज्जा ऐसी की पुस्तकें स्वयं बचों से बातें करती हैं, खेल का हॉल और मैदान बच्चों को खेलने-कूदने दौड़ने के लिए अपने पास बुलाता है, इतना ही नहीं वहाँ का इको गार्डन प्रकृति से जुड़ाव का पाठ पढ़ाता है, कक्षा कक्ष नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने की प्रेरणा देते हैं| दरसल यह सब उनकी कम शिक्षण से अधिक अधिगम की शिक्षण प्रविधि का ही विस्तारित रूप है जिसमें बच्चों को आत्म निर्देशित बनाने का प्रयास किया जाता है| कोई भी बच्चा खाली नहीं बैठता वे मानते हैं कि खाली दमाग में रचनात्मकता के साथ विध्वंस भी घर कर सकता है| इसलिए कोई संगीत में व्यस्त है, कोई आर्ट क्राफ्ट में, कोई अपनी पुस्तक पकड़ कर बैठा है कोई ईको गार्डन में श्रमदान कर रहा है, कोई खेल रहा है कोई कक्षा कक्ष में पढ़ रहा है| पुरे विद्यालय में शिक्षक का कोई पद खाली नहीं होता, न ही सत्र के दौरान किसी अध्यापक का स्थानान्तरण होता है, छात्र अध्यापक अनुपात प्राथमिक विद्यालयों में 1:30 है और सेकेंडरी में 1:40| 

अध्यापक की जितनी वहाँ पर इज्जत मान सम्मान है उतना ही अध्यापक बनना और बने रहना कठिन भी| अध्यापकों के व्यवसायिक विकास में और पदोन्नति में अध्यापक द्वारा किया जाने वाला कार्य मायने रखता है न कि वह कितने समय से अध्यापक के रूप में कार्य कर रहा है| अध्यापक के कार्य निष्पादन के आधार पर ही उनको वेतन में व व्यवसायिक उन्नती में पदोन्नति दी जाती है| हर वर्ष शिक्षक के कार्य की निष्पक्ष एवं स्वतंत्र रूप से परख करने के उपरांत जब कोई शिक्षक तय मानदंडों पर खरा उतरता है तब जाकर उसे पदोन्नति दी जाती है| उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को राष्ट्रपति महोदय द्वारा राष्ट्रीय


स्तर पर सम्मानित किया जाता है| वहाँ के बच्चे भी अपने शिक्षक को इन पुरस्कारों के लिए अपने अनुमोदित कर सकते हैं| वहाँ शिक्षकों को सरकार द्वारा विदेश से मिलने वाली शैक्षिक फेलोशिप जैसे फुल ब्राइट फेलोशिप आदि के लिए आवेदन हेतु भी प्रेरित किया जाता है ताकि वे वहाँ से सीख कर वापिस आकार अपना श्रेष्ठ दे सकें| इस तरह की फेलोशिप में सरकार को कोई खर्च भी नहीं आता और संयुक्त राज्य अमेरिका सरीखे राष्ट्रों से सीखने को भी मिल जाता है|

इसी शिक्षा प्रणाली के चलते सिंगापुर में कहावत है “We don’t have time for crime” यानि वहाँ हर कोई आने कार्य निष्पादन में इस कदर मशगूल है कि उनके पास अपराध या व्यर्थ के कर्यों के लिए समय ही नहीं है| वहाँ मानव संसाधन की महत्ता के चलते सेवानिवृति की कोई आयु नहीं जो नागरिक जब तक चाहे कार्य कर सकता है| कानून का पूर्ण शसन वहाँ देखने को मिलता है कानून तोड़ने पर कड़े जुर्मानों की वहाँ व्यवस्था है| अपने कड़े नियमों एवं जुर्मानों के लिए सिंगापुर को (Fine City) या जुर्मानों का शहर भी कहा जाता है| लेकिन भारत में जैसा की मान्यता है ‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूर्त देखी तिन तैसी’ ठीक उसी प्रकार यह सिंगापुर में रहने व वहाँ घुमने जाने वालों की दृष्टि पर निर्भर है कि वे इसे ‘Fine जुर्माना’ या ‘Fine बढिया’ शहर के रूप में देखते या पाते हैं| मेरी दृष्टि में यदि हम सिंगापुर के विश्व में शिक्षा में अग्रणी पंक्ति में खड़े होने के कोई चार कारण ढूंढे तो वो इसी अंग्रेजी के ‘FINE’ शब्द का विस्तारित रूप यथा Framing Proper Policy, Implementing policy properly, Nurturing innovative teachers एवं Evaluation हो सकता है| 

इन सब बातों का यह कतई अर्थ नहीं कि सिंगापुर में सब अच्छा ही अच्छा है और हमारे यहाँ कुछ अच्छा नहीं| यहाँ बात सन्दर्भ की है यह लेख सिंगापुर की उत्कृष्ट बातों को उजागर करने के लिए लिखा गया है ताकि हम उन बातों से सीख लेते हुए अपने देवधरा हिमाचल को स्वर्ग धरा बनाने का प्रयास करें| सिंगापुर के जिस स्थान पर हम रुके थे वो लिटिल इंडिया के नाम से मशहूर है| जिसक कारण एतिहासिक है आज से 200 वर्ष पूर्व भारतीय वहाँ कपड़े धोने का कार्य करने के लिए गए और वहीं बस गए| आज भी उस जगह स्थित मेट्रो स्टेशन का नाम धोबी घाट मेट्रो स्टेशन है| यह तो भारत से सिंगापुर गए भारतीयों का इतिहास है लेकिन आज वहाँ रहने वाले भारतीय इस इतिहास को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं वे आज सिंगापुर की अर्थव्यवस्था, शिक्षा, व्यापार एवं राजनीती में किस कदर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके है इस बात का अंदाजा यहाँ से लगाया जा सकता है कि आज वहाँ के सर्वोच्च पद पर आसीन वहाँ के महामहिम राष्ट्रपति थर्मन शनमुगरतनम भी भारतीय मूल के सिंगापुरी नागरिक हैं| अतः जिस तरह से सिंगापुर में भारतीय मूल के नागरिकों का आज बोल बाला है उससे हमें प्रेरणा लेने की आवश्यकता है तथा एक एसी शिक्षा प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जिसके निकट भविष्य में सिंगापुर के शिक्षक भी प्रदेश में प्रदेश की शिक्षा प्रणाली का अध्ययन करने के लिए आएं| 

हिमाचल कई मायनों में सिंगापुर से अलग है यहाँ की भौगौलिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक परिस्थितियाँ सभी सिंगापुर से अलग हैं| इसके बावजूद आज प्रदेश पहाड़ी राज्यों के लिए देश में एक विकास मॉडल के लिए रूप में बन का उभरा है| हाल ही में सामने आयी असर सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में केरल जैसे अग्रणी राज्य को पछाड़ कर प्रथम पायदान पर जगह बनाई है| प्रदेश ने शिक्षा की बेहतरी के लिए समय समय पर बहुत से महत्वकांक्षी कदम उठाए हैं जिनके सकारात्मक प्रतिफल भी सामने आ रहे हैं लेकिन विकास का एवं उन्नती का कोई अंतिम बिंदु नहीं होता| प्रदेश को अभी भी शिक्षकों की उपलब्धता, निष्पक्ष एवं शिक्षक अनुकूल स्थानान्तरण नीति, बुनियादी आधारभूत संरचना एवं शिक्षकों की जवाबदेही को सुनिश्चित करता ढाँचा विकसित करना होगा| ताकि शिक्षक अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन बच्चों की शिक्षा के लिए कर सके| सिंगापुर के शिक्षक संगठनों के एजेंडा में स्थानान्तरण या वेतन विसंगति जैसे मुद्दे शामिल ही नहीं है वे शिक्षा में सुधार जैसे मुद्दों पर सरकार को परामर्श देते हैं कुछ ऐसा ही मॉडल हमें अपने यहाँ भी विकसति करने के लिए प्रयास करने होंगे| यह प्रयास एकांतवास में नहीं हो सकते, न ही इसके लिए किसी एक ध्रुव पर अधिक तनाव डाला जा सकता है इसके लिए समस्त शिक्षक समाज, एवं शिक्षा के सभी हितधारकों को एकसाथ मिलकर प्रयास करने होंगे| अतः इस तरह के शैक्षिक भ्रमण और इन पर शिक्षकों के भेजा जाना वास्तव में एक एतिहसिक कदम है जिसके दूरगामी परिणाम प्रदेश की शिक्षा प्रणाली में देखने को मिलेंगे| लेकिन इसके लिए हमें उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करना होगा जो शिक्षक इस भ्रमण से लौटे हैं इनसे विस्तृत रिपोर्ट लेने के साथ ही प्रदेश में गुणात्मक शिक्षा लागु करने का रोड मैप लेना भी सुनिश्चित करना होगा| ताकि उसे धरातल पर उतारा जा सके| 


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