'हर घर बने पाठशाला' प्रदेश सरकार की बेहतरीन पहल
हिमाचल प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में देश भर में अव्वल है। यहां सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार(आर टी ई) के उद्देश्यों को अक्षरशः लागू करने का प्रयास किया गया है जिस के परिणाम स्वरूप प्रदेश का बच्चा बच्चा स्कूल में दाखिल हुआ है। प्रदेश में शिक्षा की इस सुंदर तस्वीर को राष्ट्रीय आंकड़े स्वयम दर्शाते हैं। विशेष आवश्यकता वाले (दिव्यांग) और बालिका शिक्षा इस से सब से ज्यादा लाभान्वित हुए है। स्वयम यू- डाइस से प्राप्त डेटा भी ये बताता है कि गुणवत्ता शिक्षा के साथ साथ स्कूली आधारभूत ढांचे ओर सुविधाओं में भी इजाफा हुआ है। छात्र- अध्यापक अनुपात सर्वाधिक होने के साथ साथ यहां शिक्षा के प्रति जन जागरूकता भी बढ़ी है व अविभावक अपने बच्चे का शिक्षा स्तर जानने के लिए अब सरकारी स्कूलों की बैठकों व प्रशिक्षणों में जाना सुनिश्चित करने लगे हैं।
हाल ही में कोविड-19 के कहर से पूरी दुनिया सहम सी गई है व प्रगति- चक्र रुक सा गया है। आम जन मानस जान बचाने के उद्देश्य से घरों में दुबक सा गया है व एक दूसरे के मिलने जुलने से कतई परहेज किया जा रहा है। सारी दुनिया बंद या लोकडौन है। आर्थिकी बुरी तरह अस्त-व्यस्त है व् बीते 22 मार्च से प्रदेश में भी दफ्तर, दुकानें व स्कूल सब बंद कर दिए गये थे जिन्हें चरणबद्ध तरीके से खोला जा सकता है। स्कूलों को इस महामारी के फैलने हेतु सब से संवेदनशील जगह माना गया है तथा कोमल बच्चों को अध्यापकों सहित पूर्णतया स्थितियां काबू होने तक आने की मनाही की गई है।
ऐसे में प्रदेश के सरकारी स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई पीछे न छूट जाए, इस हेतु प्रदेश सरकार ने अनूठी पहल की है। महामारी के दौरान प्रदेश के दूर दराज के क्षेत्रों के घर बैठे हुए बच्चों को भी पढ़ाई से जोडे रखा जा सके, इस हेतु प्रदेश सरकार ने शिक्षा को जारी रखने का अभियान चलाया है। इस हेतु समय और पाठ्य सामग्री तय करते हुए सरकार ने एक कदम आगे जा कर शिक्षकों हेतु भी आवश्यक मार्गदर्शिका व दिशानिर्देश तय किये गए हैं। शिक्षा के प्रति अपनी गंभीरता दिखाते हुए शिक्षा विभाग द्वारा बाकायदा "समय दस से बारह वाला,हर घर बने पाठशाला" नामक कार्यक्रम बनाया गया है जिसके अंतर्गत प्रदेश के समस्त स्कूली बच्चों के लिए सुबह 10 से 12 बजे तक ऑनलाइन वीडियो व व्हाट्सएप्प के माध्यम से पढ़ाई करवाई जाती है व साथ ही उन्हें अभ्यास कार्य भी करने को मिलता है, जिस से बच्चों को घर बैठे ही अध्ययन करवाना सुनिश्चित किया जा रहा है। उधर विभाग ने इस हेतु राज्य शिक्षा निदेशालय की ओर से वेबसाइट भी लांच कर दी है जिस के अंतर्गत कक्षा एक से ले कर बाहरवीं तक के बच्चे के आधारभूत पाठ्य विषय हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, संस्कृत आदि का अध्यापन सुनिश्चित किया गया है। ऑनलाइन पढ़ाई होने से एक तो बच्चों की पढ़ाई में भी बाधा नही पड़ेगी, दूसरा बच्चे घर में रह कर इस कोविड-19 जैसी जानलेवा बीमारी से भी बचे रहेंगे। सरकार द्वारा इस हेतु व्यापक योजना भी बनाई गई है जिसके अंतर्गत विभाग के माध्यम से रोज सुबह 9 बजे तक प्रत्येक कक्षा की पाठ्यसामग्री ओर अभ्यास कार्य स्कूल मुखियाओं के पास पहुंच जाता है व इसे वे शिक्षकों के माध्यम से प्रत्येक बच्चे के अविभावकों तक व्हाट्सएप्प के माध्यम से समय पर पहुंचना सुनिश्चित करते हैं।
ये सामग्री इतनी सरल तरीके से स्वयम निर्देशित होती है कि कोई भी अविभावक या बच्चा दिए गए लिंक पर क्लिक कर के अपनी कक्षा के प्रत्येक विषय का पठन व वीडियो देख - सुन सकता है व तत्पश्चात अपना अभ्यास कार्य कर सकता है। पढ़ने के पश्चात यदि फिर भी विषयवस्तु बच्चे की समझ मे नही आ रही है तो इस हेतु पुनः अध्यापकों से फोन के माध्यम से सम्पर्क किया जा सकता है। दिए गए गृहकार्य, जो कि अत्यंत सरल व थोड़ा सा ही होता है, को शाम तक अध्यापकों के पास चेक करवाने हेतु भेजना होता है जिसे अध्यापक चेक करके त्रुटियों से व्हाट्सएप्प के माध्यम से ही बच्चों को अवगत करवा कर निर्देशित करते हैं।
सरकार द्वारा "हर घर बने पाठशाला" को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए अविभावकों, शिक्षकों और विभाग के उच्चाधिकारियों की भूमिका तय करते हुए उन्हें दिशानिर्देशित किया गया है। इस अनूठी पहल में सब से पहले आग्रह अविभावकों से किया गया है कि उन्हें अपने बच्चे को उस के स्कूल के अध्यापक द्वारा बनाये गए व्हाट्सएप्प ग्रुप से जोड़ना होगा। तत्पश्चात सुबह 10 बजे से 12 बजे तक बच्चे को मोबाइल के माध्यम से पाठ्य सामग्री दिखाना ओर करवाना उनके माध्यम से सुनिश्चित किया गया है। दूसरे स्तर पर शिक्षकों को अपनी कक्षा के सभी अविभावकों को व्हाट्सएप्प ग्रुप में जोड़ना होगा और समय पर पाठ्यसामग्री भेजनी होगी। उन्हें बच्चों के गृहकार्य को चेक करना और खास उनके लिए बनाए गए "ऑनलाइन मोनिटरिंग फॉर्म" को शाम तक भर कर वापिस उच्चाधिकारियों को भेजना होगा। इस फॉर्म में उनके द्वारा विषयानुसार पाठ्य विषय वस्तु का आकलन किया जाएगा और इस से सम्बंधित "टीचर एप्प" पर भी निर्धारित साप्ताहिक कोर्स पूर्ण करने होंगे। उच्चाधिकारियों को भी इन्ही चरणों से क्रमशः गुजरना होगा व अधीनस्थ कर्मचारियों को समय पर सुविधा प्रदान करवाना होगा।
शिक्षा के क्षेत्र में सरकार द्वारा की गई ये पहल इस लिए भी अनूठी है कि इस से पूर्व प्रारम्भिक व उच्च शिक्षा विभाग में इस तरह की ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने की विधा पर कभी विचार नही हुआ। सरकारी प्रयासों से प्रथम बार शिक्षक, अविभावक ओर विभाग एक लक्ष्य के साथ जुड़ा है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार कक्षा एक से बारह तक के लगभग 70 फीसदी बच्चे व्हाट्सएप्प के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा से जुड़े हैं जो कि हिमाचल जैसे दुर्गम पहाड़ी राज्य के लिए गर्व का विषय है। शिक्षक सीधे रूप से अविभावकों से जुड़े हैं व अविभावकों को भी अब पता चल गया है कि अध्ययन-अध्यापन कितना मुश्किल कार्य है और उनका बच्चा किन परिस्थितियों में अध्ययन करता है। अध्यापकों ओर अविभावकों के परस्पर सहयोग से ही ये ऑनलाइन शिक्षा बच्चों को मिलनी तय हो पा रही है। अविभावक ये जान गए हैं कि किस तरह सरकारी शिक्षक एवम व्यस्था उनके बच्चे के लिये इस जानलेवा महामारी के कठिन दौर में भी उसके बच्चे की बेहतरी के लिये काम कर रहे हैं। कुल मिला कर अध्यापकों ओर अविभावकों में परस्पर सहयोग, निष्ठा, पारदर्शिता और एक दूसरे पर विस्वास बढा है।
उधर बच्चे भी इस दौरान ऑनलाइन शिक्षा हेतु स्वयम तैयार हो रहे हैं। नित्यप्रति अपना ग्रह कार्य अपने माता -पिता के मोबाइल में देखना, उसे समझना, करना व उस के बाद अभ्यास कार्य को अपने अध्यापकों के पास ऑनलाइन भेजना अपनी जिम्मेदारी समझने लगे हैं। इस तरह से सरकारी स्कूलों के बच्चे एक तो जिम्मेदार बन रहे, दूसरे वे तकनीकी तौर पर भी अपने आप को सक्षम कर रहे। अब वे अपना समय मोबाइल पर गेम्स खेलने या कार्टून देखने पर बिताने की बजाए पाठ्य सामग्री के अध्ययन पर लगा रहे। इस से अविभावक भी खुश हैं और शिक्षकों के लिये भी विषय वस्तु का अध्यापन कुछ हद तक सरल हुआ है।
विभागीय स्तर पर भी जिम्मेदारी ओर मार्गदर्शन से विभागीय तालमेल बढा है। घर बैठे अध्यापन कार्य करने से एक ओर जहाँ कुछ हद तक स्वच्छंदता मिली है वहीं नित्यप्रति विभागीय मॉनिटरिंग शिक्षण कार्य में गुणवत्ता, सुनिश्चिता ओर सहभागिता पर भी जोर दिया जा रहा है। अतः विभागीय जबाबदेही भी सुनिश्चित हुई है।
अतः संक्षेप में कहा जाए तो ऑनलाइन शिक्षा आज के विपत्ति के इस दौर में एक बेहतरीन विकल्प है, जिसे प्रत्येक स्तर पर बाखूबी निभाया जा रहा है। यधपि ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करना अपने आप मे सम्पूर्ण नही है क्योंकि जो शिक्षा एक बालक को स्कूली कक्षा के माध्यम से दी जा सकती है वह दुनिया के किसी अन्य माध्यम से प्रदान करने से नही दी जा सकती। ऑनलाइन माध्यम से मात्र विषयवस्तु का आदान प्रदान किया जा सकता है, परन्तु बच्चे का सम्पूर्ण शिक्षित और विकसित होना इस के द्वारा संभव नही। साथ ही व्हाट्सअप का माध्यम सिर्फ सूचना प्रदान करना हो सकता है, सम्पूर्ण ऑनलाइन व्यस्था व्हाट्सएप्प ही नही है। हमे प्रदेश में अधिकतर इंटरनेट की असुविधा ओर सिग्नल की परेशानी के चलते ऑनलाइन शिक्षा की अन्य संभावनाओं जेसे दूरदर्शन, रेडियो, फोन-इन आदि पर भी विचार करना होगा। साथ ही ऑनलाइन शिक्षा से उपजे बच्चों के स्वास्थ्य ओर मनोभावों के बदलाब सम्बन्धी दुष्प्रभावों को भी समय रहते भांप कर उनके निदान हेतु उपाय करने होंगे। माता पिता की आय और सामर्थ्य को भी ध्यान में रखना होगा क्योंकि हर माता पिता एंड्रॉयड या स्मार्ट फोन नही रख सकते या नेट खरीदना उनके लइये मुश्किल होगा। साथ ही ये बच्चे के मुफ्त शिक्षा प्राप्त करने के अधिकारों से भी विपरीत होगा। अतः सरकार को भी बच्चों हेतु चलाई जा रही अन्य योजनाओं या छात्रवृतियों से आगे सोच कर ऑनलाइन शिक्षा पर व्यय बढाना होगा ताकि सही मायने में प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक रूप के आगे बढ़े।
(द्वारा, संजय कुमार, गाँव बनोरडू (योल केम्प), तहसील धर्मशाला जिला कांगड़ा, हि0प्र0-176052)
(लेखक धर्मशाला से हैं और एक अध्यापक है)
फोन नम्बर- 9418494041
धन्यवाद जय हिन्द...


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ReplyDeleteVasudev
ReplyDeleteDinesh sharma
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