रक्षाबंधन का पर्व
नयी -नयी सुखद अनुभूतियाँ, कितना प्यारा-प्यारा।
अनुपम स्नेह की झाँकी में, बीते यह पर्व हमारा।
हमारी पुण्यतोया भारत वसुंधरा में मनाए जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, सोने या चाँदी के धागे जैसी वस्तु की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का बहुत ही प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का आशय बाध्य है।रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाईयों की सुख,समृद्धि, खुशहाली तथा तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु कई जगह ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) को भी रखी बाँधी जाती है।हमारे परिवारों में भी वर्षों से चली आ रही परंपरानुसार आज तक अपने कुल पुरोहित घर पर आते हैं और जनेऊ तथा राखी पहनाते हैं। रक्षाबंधन के दिन बाजार में कई सारे उपहार मिलते हैं, उपहार और नए कपड़े खरीदने के लिए बाज़ार में लोगों की सुबह से शाम तक बड़ी भीड़ लगी होती है। घर में मेहमानों का आवागमन चलता रहता है।
रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते हैं। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई बहन के प्यार को और मजबूती प्रदान करता है, इस त्योहार के दिन सभी परिवार के लोग एकजुट हो जाते हैं तथा राखी, उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार साझा करते हैं।रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्योहार है जो मुख्य रूप से हिन्दुओं में प्रचलित है पर, इसे भारतवर्ष के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव के साथ मनाते हैं। पूरे भारतवर्ष में इस दिन का माहौल बहुत ही बेहतरीन और देखने लायक होता है,और होना भी स्वाभाविक ही है क्योंकि, यही तो एक ऐसा विशेष एवं शानदार दिन है जो भाई-बहनों के लिए ही बना है।
यूं तो सर्वविदित ही है कि, भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। वर्षों से यह त्यौहार आज भी बेहद जोश,उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाये जाने वाले इस लोकप्रिय त्योहार रक्षाबंधन के मौके पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। वर्तमान समय में राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच तक ही सीमित नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
रक्षाबंधन का इतिहास हिंदू पुराण,तथा कई कथाओं में मिलता है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा इस प्रकार है कि- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।
गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
संग्रह एवं प्रस्तुति -- राजीव थपलियाल
सहायक अध्यापक गणित राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय सुखरौ देवी कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड









