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Monday, 18 October 2021

हिमाचल प्रदेश की भोगौलिक स्थिति| दिशाओं का ज्ञान| हिमाचल के सामान्य ज्ञा...

Saturday, 18 September 2021

स्वच्छता एवं साफ़ सफाई के मायने उत्तराखंड के बेह्तरीन अध्यापक श्री राजीव थपलियाल जी का लिखा यह लेख ऑन लाइन पत्रिका शिक्षा वाहिनी में|

 स्वच्छता के मायने साफ-सफाई  




विद्यार्थियों के संदर्भ में, यदि मैं बात करूं तो अक्सर हम लोग कक्षा-कक्ष में कहा करते हैं कि, यदि जीवन भर स्वस्थ और निरोगी रहना है तो अपनी स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना होगा। क्योंकि,साफ-सफाई हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह बात बिल्कुल सोलह आने सच  है कि, स्वच्छता हमारे जीवन की प्राथमिकता भी है और आवश्यकता भी। स्वच्छता जरूरी है क्योंकि साफ-सफाई से हम जीवन में आने वाली कई परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं। 
जहां तक मैं समझता हूँ,स्वच्छता का मूल अर्थ है साफ सफाई से रहने की आदत का निर्माण करना। सफाई से रहने से जहां शरीर स्वस्थ रहता है, वहीं स्वच्छता तन और मन दोनों को खुशी प्रदान कर चार चाँद लगा देती है। स्वच्छता जैसे गंभीर विषय को, सभी लोगों को अपनी दिनचर्या में अवश्य ही शामिल करना चाहिए।                                 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वच्छता के संबंध में अक्सर कहा करते थे कि- "स्वच्छता ही सेवा है और हमारे जीवन में स्वच्छता की बहुत जरूरत है"। गंदगी हमारे आसपास के वातावरण और जीवन को प्रभावित करती है। हमें व्यक्तिगत व अपने आसपास भी सफाई अवश्य रखनी चाहिए और दूसरों को भी इसके  लिये लगातार प्रेरित करते रहना चाहिये।                                  स्वच्छता के महत्व को हम कोविड-19 की कुछ घटनाओं से भी समझ सकते हैं।कोरोना काल में रोगियों की बढ़ती जनसंख्या एवं अस्पतालों में साफ-सफाई पर ध्यान देने की आवश्यकता से यह बात और भी स्पष्ट हो गई है कि, जीवन में स्वच्छता की कितनी जरूरत है। 
 स्वच्छता एक अच्छी आदत है जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है। यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। हमारे लिए शरीर की स्वच्छता  बहुत जरूरी है, जैसे रोज नहाना, स्वच्छ कपड़े पहनना, दांतों की सफाई करना, नाखून काटना, आदि। इसके लिए हमें प्रतिदिन सुबह जैसे ही हम सोकर उठते हैं, अपने दांतों को साफ करना चाहिए। चेहरा तथा हाथ पैर धोना चाहिए। साथ ही स्नानादि और दैनिक क्रियाओं को समय पर पूर्ण करना चाहिए।
यह तो हम सभी भली-भांति जानते ही हैं कि,स्वस्थ रहना शांति से जीवन जीने का एक बहुत ही अच्छा गुण है। इसके लिए घर के बड़े-बुजुर्गों और माता-पिता को अपने बच्चों में इस आदत को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वे स्वच्छता के महत्व को ठीक से समझ सकें।
 स्वच्छ भारत अभियान-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 02 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 145 वीं जयंती के मौके पर चलाया गया एक महत्वपूर्ण अभियान है। यह अभियान नई दिल्ली के राजघाट से शुरू किया गया था। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है और भारत सरकार द्वारा लगातार चलाया जा रहा है। वर्तमान समय में भी स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत कई योजनाएं शामिल की गई हैं, जिसमें ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों के घरों में शौचालाय निर्माण प्रमुख है।जिससे लोग अपने आस पास की स्वच्छता का महत्व समझेंगे और वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने में अपना लगातार योगदान देते रहेंगे।
स्वच्छता को लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कितनी दीगर बात कहा करते थे।
👉 1. महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी स्वच्छता है।
👉 2. यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता है।
👉 3. बेहतर साफ-सफाई से ही भारत के गांवों को आदर्श बनाया जा सकता है।
👉 4. शौचालय को अपने ड्रॉइंग रूम की तरह साफ रखना जरूरी है।
👉 5. नदियों को साफ रखकर हम अपनी सभ्यता को जिंदा रख सकते हैं।
👉 6. अपने अंदर की स्वच्छता पहली चीज है जिसे खूब बढ़ावा मिलना चाहिए। 
👉 7. हर व्यक्ति को अपने घर का कूड़ा प्रतिदिन खुद साफ करने का प्रयास करना चाहिए।
👉 8. मैं किसी व्यक्ति को गंदे पैर के साथ अपने मन से नहीं गुजरने दूंगा।
👉 9. महात्मा गांधी जी कहा करते थे कि ,अपनी गलती को सहर्ष स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है जो सतह को चमकदार और साफ कर देता है।
👉 10. स्वच्छता को अपने आचरण और व्यवहार में इस तरह अपना लो कि, वह आपकी बेहतरीन आदत बन जाए।


                                                   
चलिए अब हम एक और गंभीर पहलू पर्यावरण पर प्लास्टिक से होने वाले  खतरों के संदर्भ में भी थोड़ा-थोड़ा बातचीत कर लेते हैं। यह तो हम सभी लोग भली-भांति जानते ही हैं कि प्लास्टिक मानव जीवन में लगातार जहर घोल रहा है। मानव सुबह से लेकर शाम तक प्लास्टिक का उपयोग करता है,और इसे वरदान की तरह समझता है दरअसल यह हमारे पर्यावरण, पशु और हम सभी के लिए बहुत ही घातक है। प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए तथा आसपास के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए खूब सारे पेड़-पौधे लगाना बहुत ही आवश्यक है,और साथ ही प्लास्टिक बंद करने का आह्वान कर कुछ कानून बनाये जाने भी नितांत आवश्यक है ताकि प्लास्टिक के प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सके।
इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि, गंदगी से कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं जो मानव जीवन के विकास में बाधा डालती हैं। अत: जन-जन को यह समझना होगा कि, स्वच्छता हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। स्वच्छता को अपनाकर ही हम भविष्य में होने वाली बीमारियों को खत्म कर सकते हैं। 
स्वच्छता को बनाए रखने के लिए हमें इधर-उधर कचरा बिल्कुल भी नहीं फेंकना चाहिए। कचरा हमेशा संबंधित कूड़ेदान में ही फेंकना चाहिए। अंत में यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि, स्वच्छता को अपनायें और देश को आगे बढ़ायें। बेहतर साफ-सफाई से ही भारत के गाँवों को आदर्श बनाया जा सकता है। अत: स्वच्छता के लिए दूसरों को भी प्रेरित करते रहें तभी  हमारा राष्ट्र प्रगति के नए-नए सोपानों को तय कर सकेगा।
(नोट- इस आलेख को तैयार करने में अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।)              
                           

  संग्रह एवं प्रस्तुति --                  
 राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली           
 विकासखंड -जयहरीखाल          
 जनपद -पौड़ी गढ़वाल            
उत्तराखंड।

नशा एक सामाजिक कुरीति राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली द्वारा लिखा यह बेहतरीन लेख



 नशा एक सामाजिक कुरीति    

हम सभी लोग इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते ही हैं कि ,नशा हमारे समूचे समाज के लिए एक अभिशाप है । यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है । नशे के लिए समाज में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तम्बाकू और धूम्रपान (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चिलम) सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं और पदार्थों का उपयोग किया जा रहा है । इन जहरीले और नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचने के साथ ही, इससे सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता  जा रहा है, साथ ही नशा करने वाले की स्वयं की और पूरे परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को भी भारी नुकसान पहुंचता है। नशे के आदी व्यक्ति को समाज में अक्सर बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है । नशा करने वाला व्यक्ति कई बार परिवार के लिए बोझ स्वरुप हो जाता है, उसकी समाज एवं राष्ट्र के लिये उपादेयता लगभग शून्य हो जाती है । वह नशे से धीरे-धीरे अपराध की ओर अग्रसर होता चला जाता है तथा शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप बन जाता है। नशा अब एक अन्तराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गयी है । दुर्व्यसन से आज स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पा लेने में ही मानव समाज की भलाई है।जो इसके चंगुल में फंस गया वह स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ ही साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है। आज कल अक्सर ये देखा जा रहा है कि, युवा वर्ग इसकी चपेट में दिनों-दिन आ रहा है वह तरह-तरह के नशे जैसे- तम्बाकू, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट और शराब के चंगुल में फंसती जा रहा है। 
अपने आसपास नशा मुक्त समाज बनाने के लिए आम नागरिक को पूरी तरह से सहयोग करना चाहिए, ताकि इस अभियान को सफल बनाया जा सके। नशे के खिलाफ सामाजिक संस्थाओं और युवाओं को भी आगे आना चाहिये।पुलिस प्रशाशन  द्वारा नशे के दुष्परिणामों के बारे में गोष्ठियों का आयोजन कर लोगों को जागरूक करते रहना चाहिए।क्योंकि,नशा शब्द  सुनते ही मन में अजीब छटपटाहट और घबड़ाहट होने लगती है। 
नशा सेवन करना वस्तुतः एक राष्ट्रीय कलंक है। इससे अनेक प्रकार की सामाजिक कुरीतियाँ तेजी से अपने पाँव पसार रही हैं ।
नशा - सेवन शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार से घातक है । यह शरीर तथा मस्तिष्क को जर्जर कर देता है ।
अनेकों प्रकार के असाध्य रोगों का यह जन्मदाता एवं पोषक है।
कैंसर , टी ० वी ० , हृदय रोग आदि जैसे अनेक जानलेवा रोगों को नशा - सेवन आमंत्रित करता है।
सामाजिक जीवन को यह ध्वस्त कर देता है । नारी - उत्पीड़न पारिवारिक कलह , हत्या , आत्महत्या , झगड़े ,आपसी मारपीट, दंगे ,अपराध तथा अनेकों कुरीतियों एवं समाजविरोधी तत्वों को इससे अनावश्यक प्रोत्साहन प्राप्त होता है ।
बदलते सामाजिक परिवेश में यह भी देखने में आ रहा है कि ,नशा सेवन की यह कुप्रवृत्ति महिलाओं में भी तेजी से बढ़ रही है।इस दुर्व्यसन से राष्ट्र एवं समाज को व्यापक क्षति पहुंच रही है तथा उक्त बुरी लत भावी पीढ़ी को भी अपने चंगुल में ले रही है। अतः यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि, वर्तमान समय को देखते हुए,आवश्यकता इस बात की है कि, बढ़ती हुई इस कुप्रवृत्ति को , राष्ट्र एवं समाज के कल्याण के लिए , समूल नष्ट कर दें।
इस दिशा में हमें कई लाभकारी एवं सशक्त उपाय करने होंगे जैसे--
( i ) जागरूकता अभियान चलाना
( ii ) नशा का सार्वजनिक स्थलों पर सेवन पर पूर्ण रोक
( ii ) मादक पदार्थों की बिक्री पर रोक
( iv ) शासन द्वारा इस दिशा में ठोस कार्रवाई
( v ) नशेड़ियों तथा नशीले पदार्थों के तस्करों के साथ सख्त कानूनी कार्यवाही करना
( vi ) मादक - द्रव्यों के विज्ञापन पर पूर्ण रोक
( vii ) मादक - द्रव्यों से होने वाली हानियों तथा उसके घातक परिणामों से लोगों को अवगत कराना
( viii ) नशा - विमुक्ति कार्यक्रम द्वारा लोगों को नशा - सेवन से मुक्त कराकर नवजीवन प्रदान करना।
                                                 
 यह उत्साहवर्द्धक एवं हर्षपूर्ण बात है कि, सरकार इस दिशा में पूर्ण सक्रियता दिखा रही है । अनेक समाजसेवी एवं स्वयंसेवी संगठन भी इस दिशा में पर्याप्त योगदान कर रहे हैं।अनेक नशा -विमुक्ति केन्द्रों की स्थापना द्वारा नशा - सेवन करने वालों को उससे मुक्त कराने के अभियान द्वारा उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है।
नशा - सेवन के प्रति आकर्षण समाप्त कर अरूचि पैदा करने के लिए उपयुक्त औषधियों का सेवन कराया जा रहा है।
युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए इतना सब कुछ किए जाने के बाद, उम्मीद है कि, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, हमारी युवा पीढ़ी अपने चरमोत्कर्ष की ओर अग्रसर हो सकेगी और नशा मुक्त स्वच्छ और सशक्त भारत का निर्माण करने की ओर अग्रसर हो सकेगी।                                                

(नोट- इस आलेख को तैयार करने में इंटरनेट तथा अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।)                                           
संग्रह एवं प्रस्तुति --                  
 राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली                   
विकासखंड -जयहरीखाल          
 जनपद -पौड़ी गढ़वाल           
 उत्तराखंड।

Saturday, 4 September 2021

पढ़िए उत्तराखंड के बेहतरीन शिक्षक राजीव थपलियाल जी का डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी पर लिखा यह लेख

आदर्श शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (जन्म दिवस 05 सितंबर पर विशेष) ............................................................................नई-नई सुखद अनुभूतियाँ, कितना प्यारा - प्यारा। अनुपम स्नेह की झांकी में, बीते शिक्षक दिवस हमारा। महान शिक्षाविद, दार्शनिक और स्वतंत्र भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 05 सितंबर सन 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिरुतणी नामक ग्राम में हुआ था। प्रखर वक्ता तथा दार्शनिक स्वभाव के आस्थावान विचारक ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षण कार्य में व्यतीत किये। इस महान विभूति में एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे। यदि इनके सफरनामे पर, एक दृष्टि डाली जाए तो हम देख पाते हैं कि, सन 1952 से 1962 तक वे देश के उपराष्ट्रपति तथा 1962 में ही राष्ट्रपति बने, इसी दौरान उनके कुछ शिष्यों और प्रशंसकों ने उनसे निवेदन किया कि, वे सभी लोग डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं।तो इस संबंध में उन्होंने कहा कि, मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चित ही मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस करूँगा। तब से हर साल 05 सितंबर का दिन समूचे भारतवर्ष में शिक्षक दिवस के रूप में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस महान विभूति का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।कुशल प्रशासक जाने-माने विद्वान देशभक्त और उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्री के रूप में इस महान विभूति की गिनती देश-विदेश में होती है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सारे विश्व को एक शिक्षालय मानते थे उनकी मान्यता थी कि, शिक्षा के द्वारा ही मानव के दिमाग का सही ढंग से सदुपयोग किया जाना संभव है। अतः समस्त विश्व को एक इकाई समझ कर ही शिक्षा का प्रबंधन किया जाना चाहिए। एक बहुत खास बात डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के व्यक्तित्व में यह थी कि, वे अपनी गुदगुदाने वाली कहानियों बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे, और दर्शनशास्त्र जैसे गंभीर विषय को अपनी बेहतरीन और लाजवाब शैली से सरल और रोचक बना देते थे। महान दार्शनिक की उपलब्धियाँ 👉 रूस में भारत का राजदूत रहते हुए विश्व के विभिन्न देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये। 👉-वॉल्टियर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। 👉 वर्ष 1939 से 1948 तक बीएचयू के चांसलर रहे। 👉 सन 1948 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।इसके अलावा डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,प्रथम भारतीय के रूप में ब्रिटिश अकादमी के लिए भी चुने गए। 👉कई वर्षों तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे,साथ ही कोलकाता विश्वविद्यालय के जॉर्ज पंचम कॉलेज में भी प्रोफेसर रहे। 👉इन सभी उपलब्धियों को देखते हुए वर्ष 1954 में इस महान विभूति को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 👉 1961 में इन्हें जर्मनी के एक पुस्तक प्रकाशन द्वारा विश्व शांति पुरस्कार से नवाजा गया। 1975 में इन्हें टेंपलटन पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। कुल मिलाकर इस महान शिक्षाविद के जीवन का सफर बहुत जानदार, शानदार और प्रेरणादायक रहा। शिक्षक दिवस के बेहतरीन मौके पर इस महान शिक्षा शास्त्री को हमारा शत-शत नमन, कोटि-कोटि प्रणाम। पूरे विश्व में शिक्षा का दीपक जलाते- जलाते इस महान विभूति का पार्थिव शरीर 17 अप्रैल 1975 को पंचतत्व में विलीन हो गया। कर्मठता और भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक के रूप में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सदैव स्मरणीय रहेंगे। इस महान व्यक्तित्व के साथ-साथ समूचे शिक्षक समाज को चंद पंक्तियां समर्पित करना चाहूंगा----.... सदाबहार फूलों सा खिलकर, महकता और महकाता शिक्षक।। रोज नए प्रेरक आयाम लेकर, हर क्षण रोचक बनाता शिक्षक।। ढेर सारा ज्ञान पल भर में देकर, खूब खिलखिलाता शिक्षक।। देश के लिए सब कुछ करने की, हर राह दिखाता शिक्षक।। प्रकाश पुंज बनकर हर समय, अपना शिक्षक धर्म निभाता शिक्षक।। आदर्शों की मिसाल बनकर, बाल जीवन संवारता शिक्षक।। ................................इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि, शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व माना जाता है। कहा जा सकता है कि, शिक्षक समाज का आईना होता है शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है। जो सभी को ज्ञान देता है, और जिसका योगदान,किसी भी राष्ट या देश के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायने में यदि,देखा जाए तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है और शिक्षक ही समाज की आधारशिला है।माता पिता अपने बच्चे को जन्म देते हैं,लेकिन एक शिक्षक ही है जिसे हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दर्जा दिया गया है, क्योंकि शिक्षक ही हमें समाज में रहने योग्य बनाता है।विद्यार्थी के मन में पनपने वाले हर सवाल का जवाब देता है, और विद्यार्थी को सही सुझाव देता है, सही मार्गदर्शन करता है, और जीवन में आगे बढ़ने के लिए हर समय प्रेरित करता रहता है। एक शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है।अतः यहाँ पर यह कहना समीचीन होगा कि,एक शिक्षार्थी को अपने गुरु के प्रति सदा आदर और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं हो जाता,उसे नित नये आयाम प्रतिपादित करते हुए अपने चर्मोत्कर्ष की ओर अग्रसर होते रहना चाहिए, क्योंकि समाज में शिक्षक का ही ऐसा व्यक्तित्व होता है,जो सभी को सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए लगातार प्रेरित करता रहता है।तभी तो प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। किसी भी देश या राष्ट्र के विकास में एक शिक्षक द्वारा अपने शिक्षार्थी को दी गई शिक्षा और शैक्षिक विकास की भूमिका का अत्यंत महत्व है। हम सभी गुरुजनों को सदैव अपने जीवन में उच्च आदर्श जीवन मूल्यों को स्थापित कर,आदर्श समाज का निर्माण करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। शिक्षक दिवस के इस शानदार मौके पर मैं एक महत्वपूर्ण बात स्पष्ट करना चाहूँगा कि,सर्वप्रथम तो मैं अपने माता-पिता का अत्यधिक ऋणी हूँ जिन्होंने मुझे भारत वसुंधरा में जन्म देकर यह सुनहरा संसार दिखाया। और साथ ही मैं अपने उन सभी गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ जिनके सानिध्य में रहकर मैंने अपनी ज्ञान पिपासा को शांत किया।मैं हृदय की गहराइयों से धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूँगा उन सभी गुरुजनों और शुभचिंतकों का जिन्होंने मेरी इस शैक्षिक यात्रा में अपने दुलार ,प्यार और सहानुभूति से, मुझे सर्पणी की भांति रेंगती हुई पगडंडियों के ऊपर से बड़ी सहजता और शालीनता के साथ चलना सिखाने और मुझे इस काबिल बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया। अंत में मैं ,आप सभी विद्वान गुरुजनों के सम्मान में कुछ पंक्तियां समर्पित करना चाहूँगा। गुरुदेव......... जीवन के हर अंधेरे में, रोशनी दिखाते हैं आप। बंद हो जाँय जब,सब दरवाजे, नये-नये रास्ते दिखाते हैं आप। सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं, जीवन जीना भी सिखाते हैं आप। ..................................... संग्रह एवं प्रस्तुति ------------------ राजीव थपलियाल प्रधानाध्यापक राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र--मठाली विकासखंड-- जयहरीखाल जनपद-- पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।

Sunday, 29 August 2021

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद (राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त पर विशेष) लेख उत्तराखण्ड के शिक्षक राजीव थपलियाल जी का

हॉकी के जदूगर मेजर ध्यानचंद (राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त पर विशेष) यह तो हम सभी लोग भली-भांति जानते ही हैं कि, विश्व के महानतम खिलाड़ियों में से यदि एक ऐसे व्यक्ति का नाम पूछा जाए, जिसने हॉकी के खेल में अपने करिश्माई प्रदर्शन से पूरी दुनिया को अचम्भित कर खेलों के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया हो, तो अधिकतर लोगों का जवाब होगा भारत वसुंधरा का लाल मेजर ध्यानचन्द। हॉकी के मैदान पर, जब वे अपने बेहतरीन अंदाज में स्टिक पकड़कर खेलने उतरते थे, तब एक ऐसा मायावी इन्द्रजाल बुन देते थे कि, विपक्षी टीम की हार सुनिश्चित लगने लगती थी । उनके बारे में यह कहा जाता है कि, वे किसी भी कोण से गोल कर सकते थे। यही कारण है कि सेण्टर फॉरवर्ड के रूप में उनकी तेजी और जबरदस्त फुर्ती को देखते हुए उनके जीवनकाल में ही उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा था।हॉकी के ऐसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी ध्यानचन्द का जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब-प्रयागराज) mnशहर में हुआ था।उनके पिता सोमेश्वर दत्त सिंह मूल रूप से पंजाब के निवासी थे और उस समय ब्रिटिश इण्डियन आर्मी में सुबेदार के पद पर इलाहाबाद में तैनात थे।कुछ दिनों बाद उनका स्थानान्तरण झाँसी में हो गया, इसलिए ध्यानचन्द भी अपने पिता के साथ वहीं रहने चले आए।इनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी झाँसी में ही हुई थी।अपने पिता के स्थानान्तरणों से पढ़ाई के बाधित होने और हॉकी के प्रति अपनी दीवानगी के कारण वे केवल छठी कक्षा तक ही पढ़ाई कर सके। उनके बचपन का नाम ध्यानसिंह था।वे बचपन में अपने मित्रों के साथ पेड़ की डाली से स्टिक और बेकार पड़े कपड़ों की गेंद बनाकर हॉकी खेला करते थे । एक बार की बात है, वे अपने पिता के साथ एक हॉकी मैच देख रहे थे । इसमें एक पक्ष के खिलाफ विरोधी पक्ष ने लगातार कई गोल किए।कमजोर पक्ष की स्थिति देखकर ध्यानचन्द ने अपने पिता से कहा कि यदि वे इस पक्ष की तरफ से खेले, तो परिणाम कुछ और ही होगा।वहीं पास में खड़ा आर्मी का एक ऑफिसर उनकी बात को सुन रहा था।उसने ध्यानचन्द को कमजोर पक्ष की ओर से खेलने दिया और थोड़ी ही देर में विरोधी टीम के खिलाफ लगातार चार गोल कर उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दे दिया। उस समय उनकी आयु मात्र 14 वर्ष थी।उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर कुछ समय बाद आर्मी के उस ऑफिसर ने उन्हें मात्र 16 वर्ष की आयु में इण्डियन आर्मी में भर्ती कर लिया। इसके बाद हॉकी से उनका साथ किसी-न-किसी रूप में जीवनपर्यन्त रहा।आर्मी में शामिल होने के बाद उनके ब्राह्मण रेजीमेण्ट के कोच भोले तिवारी इनके पहले कोच बने।ऐसा कहा जाता है कि, आर्मी में सिपाही के तौर पर कार्य करने के कारण उनके पास हॉकी खेलने के लिए वक्त नहीं होता था, इसलिए रात को जब उनके सभी साथी बैरक में सो जाते थे, तब ध्यानचन्द चाँद की रोशनी में हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे। इससे हॉकी के प्रति उनकी दीवानगी का पता चलता है। आर्मी में शामिल होने के साथ ही उनके हॉकी खिलाड़ी के रूप में कैरियर की शुरूआत तब हुई, जब 21 वर्ष की आयु में वर्ष 1926 में उन्हें न्यूजीलैण्ड जाने वाली भारतीय टीम में चुन लिया गया। इस दौरे में भारतीय सेना की टीम ने 21 में से 18 मैच जीते थे।23 वर्ष की उम्र में ध्यानचन्द वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक में पहली बार भाग ले रही भारतीय हॉकी टीम के सदस्य के रूप में चुने गए। यहाँ चार मैचों में भारतीय टीम ने 23 गोल किए और अन्त में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रही।वर्ष 1932 में लॉस एंजिल्स ओलम्पिक में भारत ने अमेरिका को 24-1 के रिकॉर्ड अन्तर से हराया। इस मैच में ध्यानचन्द एवं उनके बड़े भाई रूपसिंह ने आठ-आठ गोल किए थे। इस ओलम्पिक में भी भारतीय टीम को स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था।वर्ष 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचन्द भारतीय हॉकी ओलम्पिक टीम के कप्तान थे।इस दौरान 15 अगस्त,1936 को हुए फाइनल मैच में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्ण पदक पर कब्जा किया, यह अपने आप में काबिले तारीफ था क्योंकि, इस मैच को जर्मनी का तत्कालीन तानाशाह हिटलर भी देख रहा था। कहा जाता है कि मैच समाप्त होने के बाद स्वयं हिटलर ने ध्यानचन्द से मुलाकात कर उनके खेल की बहुत तारीफ की थी। इतना ही नहीं, विश्व के महान् क्रिकेटर सर् डॉन ब्रैडमैन को भी ध्यानचन्द ने अपना कायल बना दिया था।वर्ष 1932 में भारतीय हॉकी टीम ने पूरे साल में कुल 37 मैच खेलकर 338 गोल बनाए थे और इनमें से 133 गोल ध्यानचन्द ने किए थे।उनके भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहते हुए टीम ने विभिन्न ओलम्पिक खेलों में कुल 28 गोल किए थे, इनमें से 11 गोल ध्यानचन्द के नाम दर्ज हैं। ओलम्पिक और उसके क्वालीफाई मैचों में 101 गोल करने और अन्य इण्टरनेशनल मैचों में 300 गोल करने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के खाते में है। उनके करिश्माई खेल का ही नतीजा था कि, हॉलैण्ड में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक को तोड़कर देखा गया कि,कहीं उसमें चुम्बक तो नहीं लगा है। जापान में उनकी हॉकी स्टिक का यह सच जानने के लिए परीक्षण किया गया था कि, कहीं उसमें गोंद का प्रयोग तो नहीं हुआ है। उनके प्रदर्शन के दम पर ही भारतीय हॉकी टीम ने तीन बार वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक, वर्ष 1932 के लॉस एंजिल्स ओलम्पिक एवं वर्ष 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। यह हमारे सभी देशवासियों के लिए बड़े गर्व की बात है।यह भारतीय हॉकी को ध्यानचंद का सबसे बड़ा योगदान है। ध्यानचन्द ने अपना अन्तिम मैच वर्ष 1948 में खेला था तथा उसी वर्ष उन्होंने अपने स्वर्णिम खेल जीवन से संन्यास लेने की घोषणा कर दी।उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में,400 से अधिक गोल किए,जो कि अपने आप में एक कीर्तिमान है। ध्यानचन्द को वर्ष 1938 में ‘वायसराय का कमीशन’ मिला और वे जमादार बने।इसके बाद वे पदोन्नति पाते हुए क्रमशः सुबेदार, लेफ्टिनेण्ट और कैप्टन बनते चले, अन्ततः उन्हें मेजर बना दिया गया।उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें विभिन्न पुरस्कारों एवं सम्मानों से विभूषित किया गया। वर्ष 1956 में 51 वर्ष की उम्र में जब वे भारतीय सेना के मेजर पद से सेवानिवृत्त हुए, तो उसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया।उनके जन्मदिन 29 अगस्त को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा भी हुई। खेलों से सम्बन्धित अर्जुन पुरस्कार, राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड और गुरु द्रोणाचार्य अवार्ड हर वर्ष इसी दिन प्रदान किए जाते हैं।उनको सम्मानित करने के लिए वियना के एक स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है, जिसमें उनको चार हाथों में चार स्टिक पकड़े हुए दिखाया गया है। नई दिल्ली में एक स्टेडियम का नाम उनके नाम पर मेजर ध्यानचन्द स्टेडियम रखा गया है एवं भारतीय ओलम्पिक संघ ने उन्हें शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया है। वर्ष 1979 में जब ध्यानचन्द बीमार हुए, तो उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती करवाया गया।वहां के डॉक्टरों की टीम द्वारा उन्हें बचाने के सारे प्रयास विफल रहे और 3 दिसम्बर,1979 को उनका देहान्त हो गया।झाँसी में उनका अन्तिम संस्कार किसी घाट पर न कर, उस मैदान पर किया गया, जहाँ वे अक्सर हॉकी खेला करते थे, इस तरह से हॉकी के इस महान जादूगर का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।अपने जीवनकाल में अभूतपूर्व उपलब्धियाँ हासिल करने के बाद भी इस महान् व्यक्तित्व ने अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में लिखा है कि, ”आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूँ ।” अतः यहाँ पर यह कहना समीचीन होगा कि,केवल हॉकी ही नहीं खेलों के इतिहास में भी मेजर ध्यानचन्द का नाम हमेशा- हमेशा के लिए अमर रहेगा। (नोट- इस आलेख को तैयार करने में इंटरनेट तथा अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।) संग्रह एवं प्रस्तुति -- राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली विकासखंड -जयहरीखाल जनपद -पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।

Wednesday, 2 June 2021

Result of Quiz on World no tobacco Day 2021 Declared


 विश्व तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता 


शीर्ष दस बच्चों की सूची 


Anisha Sharma
Bhupesh Kumar Kainth
Rahul devel
Vikram
Neha
Shubham Sharma
Muskan
Vidya
Tanuja
Sanjana


आप सभी को आपकी मेल आई पर आपका पुरस्कार भेज दिया गया है|

ऐसे ही Quiz में आगे भी हिस्सा लेते रहने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर लें व साथ ही इस ऑनलाइन ई मागज़ीने को भी फॉलो कर लें|

धन्यवाद जय हिन्द 

Tuesday, 1 June 2021

"पर्यावरण संरक्षण में हमारी भूमिका" पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर उत्तराखंड के बेहतरीन अध्यापक राजीव थपलियाल जी द्वारा लिखा यह शानदार ज्ञानवर्धक लेख|

 पर्यावरण संरक्षण में  हमारी भूमिका



सही मायने में यदि देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि,पर्यावरण संरक्षण  का आशय पर्यावरण की सुरक्षा करना है।और हम सभी यह बहुत अच्छी तरह से जानते ही हैं कि, पेड़ पौधों तथा वनस्पतियों का मानव जीवन में बहुत बड़ा योगदान होता है।वे मनुष्य के लिए अत्यंत उपयोगी हैं,वे मानव जीवन का आधार हैं,इस बात को स्वीकारने में हमें तनिक भी हिचकिचाहट नहीं करनी चाहिए।  लेकिन विचित्र विडंबना यह है कि, आज मानव इनके इस तरह के महत्व व उपयोगिता को न समझते हुए इनकी बहुत ज्यादा उपेक्षा कर रहा है। गौण लाभों को अत्यधिक महत्व देते हुए इनका लगातार दोहन करता चला जा रहा है।मैं यहां पर यह कहना चाह रहा हूँ कि, हम लोग अपने फायदे हेतु जितने पेड़ काट रहे हैं,उतने से दो चार ज्यादा पेड़ लगाने का प्रयास यदि हम सभी लोग करें तो बहुत ही अच्छा होगा।परन्तु ऐसा नहीं हो पा रहा है परिणामस्वरूप भूमि पर पेड़ों की संख्या लगातार घटती ही जा रही है।यह अपने आप में हम सभी भारत वसुंधरा वासियों के लिए अत्यन्त शोचनीय एवं चिंता का विषय है। इसके कारण से अनेकों और समस्याएँ मनुष्य के सामने दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा  रही हैं।                                  

अब यदि कहीं पर भी बात आती है कि, पर्यावरण संरक्षण क्यों जरुरी है?तो हम निर्भीकता पूर्वक यह कह सकते हैं कि,हर प्राणी अपने जीवन यापन हेतु वनस्पति जगत पर आश्रित है।मनुष्य हवा में उपस्थित ऑक्सीजन को श्वास द्वारा ग्रहण करके जीवित रहता है। पेड़-पौधे ही प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस तरह मनुष्य के जीवन का आधार,पेड़-पौधे ही उसे प्रदान करते हैं।इसके अतिरिक्त कई प्राणियों का आहार वनस्पति ही है।वनस्पति ही उन प्राणियों को पोषण प्रदान करती है।इसलिए पर्यावरण का संरक्षण करना हम सभी के लिए बहुत जरुरी है।       

काफी समय पहले से कल-कारखानों की वृद्धि को विकास का आधार माना जाता रहा है।खाद्य उत्पादन के लिए कृषि तथा सिंचाई पर जोर दिया जाता रहा है, परन्तु वन-संपदा की महत्ता समझने की ओर जितना ध्यान देना आवश्यक था, उतना दिया ही नहीं गया।कई लोगों द्वारा पेड़-पौधों को जमीन घेरने वाला माना जाता गया, और उन्हें काटकर कृषि करने की बात सोची जाती रही है।चूल्हा जलाने की लकड़ी तथा इमारती लकड़ी की आवश्यकता के लिए भी वृक्षों को अंधाधुंध काटा जाता रहा है,और उनके स्थान पर नए वृक्ष लगाने की उपेक्षा बरती जाती रही है। इसलिए आज हम वन संपदा की दृष्टि से बहुत ही निर्धन होते चले जा रहे हैं। वर्तमान में हम सभी लोग कई, परोक्ष दुष्परिणामों को प्रत्यक्ष हानि के रूप में अपनी आंखों के सामने होता हुआ देख रहे हैं।अतः हमें यह स्वीकारना ही पड़ेगा कि,पर्यावरण संरक्षण वर्तमान समय की बहुत ही महत्वपूर्ण मांग है।

पेड़ पौधों और वनस्पतियों से धरती हरी-भरी बनी रहे तो उससे मनुष्य को अनेकों प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ होते हैं। ईंधन व इमारती लकड़ी से लेकर फल-फूल,औषधियाँ प्रदान करने, वायुशोधन, वर्षा का संतुलन,पत्तों से मिलने वाली खाद,धरती के कटाव का बचाव, बाढ़ रोकने, कीड़े खाकर फसल की रक्षा करने वाले पक्षियों को आश्रय आदि प्रदान करने वाले अनेक अनगिनत लाभ पेड़-पौधों से होते हैं।   

स्काटलैंड के प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक राबर्ट चेम्बर्स ने पेड़ पौधों की उपादेयता के संबंध में कितनी दीगर बात कही थी कि - वन नष्ट होंगे तो पानी का अकाल पड़ेगा, भूमि की उर्वरा शक्ति घटेगी और फसलों की पैदावार कम होती जाएगी,पशु नष्ट होंगे,पक्षी घटेंगे।वन-विनाश का अभिशाप जिन पांच प्रेतों की भयंकर विभीषिका बनाकर खड़ा कर  देगा वे हैं- बाढ़, सूखा, गर्मी, अकाल और अनगिनत जानलेवा बीमारियाँ।                     

यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि,हम लोग जाने-अनजाने में वन संपदा नष्ट करते हैं और उससे जो पाते हैं, उसकी तुलना में कहीं अधिक गंवाते हैं।दूसरी तरफ यदि नजर डालें तो हम पाते हैं कि, वायु प्रदूषण आज समूचे संसार के लिए एक बहुत ही विकट समस्या है।ऐसा प्रतीत होता है कि, शुद्ध वायु का तो जैसे सभी जगह अभाव सा हो गया है। दूषित वायु में साँस लेने वाले मनुष्य और अन्य प्राणी भी स्वस्थ व निरोगी किस प्रकार से रह सकेंगे यह भी बहुत बड़ी  चिंता का कारण बना हुआ है।                                    

यह बात भी सोलह आने सच है कि,शुद्ध वायु ही प्राणों का आधार है। वायुमंडल में व्याप्त प्राणवायु ही मनुष्य  और जीव-जंतुओं को जीवन देती है। इस वायु के अभाव में अनेकों विषैली गैसों का अनुपात बढ़ता जाता है, और प्राणिजगत  के लिए विपत्ति का कारण बनता है। बहुत सारे अन्वेषणकर्ता वैज्ञानिकों का मत है कि, पृथ्वी के वायुमंडल में प्राणवायु की मात्रा बहुत कम होती जा रही है, और दूसरे तत्व तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।यदि वृक्ष-संपदा को नष्ट करने की यही गति चलती रही तो वातावरण में दूषित गैसें इतनी अधिक हो जाएंगी कि पृथ्वी पर जीवन-यापन दूभर हो जाएगा।इस विषम स्थिति का एकमात्र समाधान हरीतिमा संवर्धन है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि,समय रहते हम लोगों ने हरीतिमा संवर्धन करने का प्रयास नहीं किया तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएँ बहुत ही विकराल रूप ले लेंगी।

प्राचीनकाल की तरफ यदि हम लोग दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि, ऋषि-मुनि भी अपने आश्रम के आस-पास वन लगाते थे।उन्हें पर्यावरण संरक्षण के बारे में अवश्य ही पता रहा होगा।वे लोग वृक्ष तथा वनस्पतियों को प्राणिजगत का जीवन आधार मानते थे और उन्हें बढ़ावा देने को सर्वोपरि प्रमुखता देते थे। अपनी कुटिया के इर्द-गिर्द वृक्षों की न्यूनता को देखकर कवि हृदय ऋषि-मुनि विह्वल हो उठते थे और धरती माता से पूछते थे कि,


“पत्तों के समान ही जिनमें पुष्प होते थे और पुष्पों के समान ही जिनमें प्रचुर फल लगते थे और फल से लदे होने पर भी जो सरलता से चढने योग्य होते थे, हे माता पृथ्वी! बता वे वृक्ष अब कहाँ गए?”


हमारे धर्मशास्त्रों की यदि बात की जाय तो तुलसी,वट,पीपल,आंवला आदि वृक्षों को देव संज्ञा में गिना गया है।ये सभी वृक्ष अन्य वृक्षों की ही तरह मनुष्य परिवार के ही अंग हैं,वे हमें प्राणवायु प्रदान करके जीवित रखते हैं।वे हमारे लिए इतने अधिक उपयोगी हैं,जिसका मूल्यांकन करना बहुत कठिन है। अतः हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने का प्रयत्न हर समय करते रहना चाहिए। आज हम सभी लोगों का यह प्रयास होना चाहिए कि, पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाएं।वास्तव में पर्यावरण संरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिसे अकेले कोई भी हल नहीं कर सकता। न तो मात्र सरकारी स्तर पर बढ़ते पर्यावरण असंतुलन को नियन्त्रित किया जा सकता है, न ही अकेले कोई संगठन कर सकता है। इसके संरक्षण एवं संवर्द्धन में प्रत्येक व्यक्ति को अपना-अपना योगदान देना होगा, बढ़-चढ़ कर आगे आना होगा, सकारात्मक पहल करनी होगी, तभी यह कार्य आसान हो सकता है। इसके लिए हम सभी कुछ न कुछ योगदान अवश्य कर सकते हैं, चाहे हम विघार्थी हैं, शिक्षक हैं, जनप्रतिनिधि हैं,डॉक्टर हैं, वकील हैं, किसान हैं, युवा हैं, गृहणी हैं,समाज सेवी हैं, या व्यापारी। हम सबकी पर्यावरण संरक्षण में भूमिका हो सकती है, यदि हम दैनिक जीवन में कुछ छोटी—छोटी बातों का ध्यान रखकर कार्य करें, तो बहुत ही बेहतर होगा....................

                 जिन कार्यों को हम कर सकते हैं,उन्हें करने का प्रयास जरूर कीजियेगा


👉पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों का न्यूनतम विरोध अवश्य करें।

 कागज़ का दोनों तरफ से प्रयोग करके कागज़ की खपत घटायें तथा लिफाफों को भी पुनः प्रयोग में लायें तो बेहतर होगा।पुरानी पुस्तकें पुस्तकालयों या जरूरतमंद लोगों को भेंट कर दें।

👉 यात्रा के लिए यथासंभव सार्वजनिक वाहनों का ही प्रयोग करें तो अच्छा होगा। कम दूरी की यात्रा के लिए साईकिल का प्रयोग किया जा सकता है।बाज़ार जाते समय कपड़े या जूट का थैला साथ ले जायें, सामान उसी में लायें।

👉 नल बेकार चल रहा हो तो उसे तुरन्त बंद कर दें। हर प्रकार से जल की बचत करें, क्योंकि जल ही जीवन है।जल है तो कल है।आपका आज ठीक है तो निसंदेह कल भी ठीक होगा,हर समय आशावादी रहें।

👉फलों व सब्जियों के छिलकों को केंचुओं की मदद से खाद बनाने में प्रयोग करें।

👉अपनी व अपनों की हर खुशी के मौके/अवसरों पर,साथ ही अपने प्रियजनों की स्मृति में पेड़-पौधे लगाने का प्रयास, जहां पर भी आपको उचित लगे, अवश्य कीजियेगा।

👉 पर्यावरण संरक्षण में मददगार जीवों जैसे- गिद्ध, सांप, छिपकली, मेंढ़क, केंचुआ तथा बाघ आदि की रक्षा करने का प्रयास करें।

👉 पेयजल स्त्रोतों के आसपास सफाई रखें। वर्षा जल के संग्रह का स्वयं प्रयास करें व सरकारी योजनाओं में सहयोग करें। परम्परागत जल स्त्रोतों—जोहड़, तालाब, नदियों व बावड़ियों आदि का संरक्षण अवश्य कीजियेगा।

अपने खेतों की मेंढ ऊंची बनायें ताकि वर्षा का पानी बहकर न जा सके।

सब्जी धोए हुए पानी को पौधों में डाल दें। कपड़े धोए हुए पानी को भी खेत में डाल सकते हैं।

👉 व्यर्थ बहते व गन्दे पानी को सोख्ता गड्ढे (सोक पिट्स) बनाकर उसमें डालें। इससे कीचड़ तो समाप्त होगा ही भूमिगत जलस्तर बढ़ाने में भी मद्द मिलेगी।

👉गोबर गैस प्लांट लगाकर बायो गैस से भोजन बनायें तथा ईंधन के रूप में जलने वाली लकड़ी व गोबर की बचत करें। सरकारी अनुदान से भी गाँव में गोबर गैस प्लांट लगवाया जा सकता है।

👉 सौर उपकरणों का प्रयोग करके ऊर्जा संसाधन बचायें। सौर उपकरण भी सरकार अनुदान पर उपलब्ध करवाती है।

👉 नियमित रूप से यज्ञ करें ताकि आपके आस-पास का वातावरण हर समय शुद्ध रहे।और आपको आनंदानुभूति हो।

👉 रतनजोत (जट्रोफा) के अधिक से अधिक पौधे लगाकर बायो डीजल बनाने में सहयोग करें। पौधे लगाने के लिए हमारी सरकार भी सहयोग करती है,तथा पैदावार भी खरीदती है।

👉खाना पकाने के लिए उन्नत व धुंआ रहित चूल्हों का प्रयोग करें।

👉जंगली जीव—जन्तुओं की सुरक्षा करें, अवैध शिकार रोकने में सहयोग करें।

👉 जैव-खाद व जैव- कीटनाशकों का प्रयोग करें, ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।

👉 कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने में अपना सहयोग दें, इस तरह की घटनाओं से सामाजिक संतुलन बहुत ज्यादा बिगड़ रहा है।आबादी के बढ़ते दबाव को कम करने के लिए अपने परिवार को सीमित रखने का प्रयास कीजियेगा।

                अगर हिम्मत जुटाकर, आपसे संभव हो पाए, तो इन कार्यों को मत कीजिएगा 


👉 धूम्रपान कभी न करें, इससे कैंसर व टी.बी. जैसे रोग हो सकते हैं साथ ही वातावरण भी प्रदूषित होता है। सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना दण्डनीय अपराध है, क्योंकि सरकार ने धूम्रपान पर रोक लगा रखी है।

👉 गुटखा व तम्बाकू न खायें, ये मुंह के कैंसर को जन्म देते हैं साथ ही इनकी पाउच व थैलियों से पर्यावरण बहुत ज्यादा प्रदूषित होता है।

👉 पॉलिथीन थैलियों का प्रयोग बिल्कुल न करें। ये हमारे स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों के लिए बहुत ज्यादा घातक हैं। सरकार ने भी इनके प्रयोग व फेंकने पर पाबंदी लगा रखी है।

👉 घर का कूड़ा—करकट गली में न फेंके बल्कि निर्धारित स्थान पर डालें तथा गीला व सूखा कचरा अलग—अलग डालें। गीला कचरा खाद बनाने के काम आता है।

👉डिस्पोजेबल वस्तुओं जैसे प्लेट, कप, गिलास आदि का प्रयोग न करें बल्कि मालू या अन्य तरह के पत्तों से बने पत्तल व दोनों,का प्रयोग करें या कांच अथवा धातु के बर्तनों का इस्तेमाल करें।

👉दूध निकालने के लिए दुधारू पशुओं को ऑक्सीटोसीन का इंजैक्शन न लगायें। यह पशु व मानव दोनों के लिए नुकसानदेह होता है।

👉सब्जियों को जल्दी बड़ा करने के लिए भी ऑक्सीटोसीन का इंजैक्शन नहीं लगाना चाहिए। ऐसी सब्जी मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।

👉रासायनिक खादों व कीटनाशकोंं का अंधाधुंध प्रयोग न करें।

👉 कोल्ड ड्रिंक का उपयोग न करने का प्रयास करें।

👉 शराब बिल्कुल न पीयें। इससे धन व स्वास्थ्य दोनों की बर्बादी होती है। साथ ही इसके निर्माण में भारी मात्रा में पानी बरबाद होता है।

👉नल को कभी खुला न छोड़ें व पानी को व्यर्थ न बहने दें।

👉 पेयजल नलकूपों व अन्य स्त्रोतों के पास गन्दा पानी जमा न होने दें।

👉 सौन्दर्य प्रसाधनों जैसे शैम्पू, क्रीम, सेंट, लिपस्टिक, नेल पॉलिश आदि का प्रयोग न करें। इनसे प्राकृतिक सुन्दरता तो नष्ट होती ही है, इनके निर्माण के दौरान क्लोरो—फ्लोरो कार्बन गैसें भी निकलती हैं जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं।

👉 चमड़े व अन्य प्राणी अंगों से बनी वस्तुओं का प्रयोग न करें। ये वस्तुएं जंगली जानवरों के अवैध शिकार को बढ़ावा देती हैं।

👉रेडियो, सी.डी. प्लेयर, टी.वी., डी.जे. आदि धीमी आवाज़ पर ही बजायें। इनसे ध्वनि प्रदूषण फैलता है।

👉धार्मिक आयोजनों में लाऊड स्पीकरों का प्रयोग न करें, भगवान जी तो सभी के मन की बात सुन ही लेते हैं।

👉 हरे पेड़ों को न स्वयं काटें और न ही दूसरों को काटने दें।

👉 खराब बैट्री कबाड़ी को न बेचें बल्कि विक्रेता को ही लौटायें। कबाडी़ द्वारा इन्हें तोड़े जाने पर शीशा धातु वातावरण में फैल जाता है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है।

👉 प्रेशर हार्न का प्रयोग बिल्कुल भी न करें, यह प्रतिबन्धित है।

👉 अपने घर, कार्यालय सार्वजनिक भवनों, सामुदायिक भवनों, आदि में विघुत उपकरणों को बेवजह चलता न छोड़ें।         

 (नोट- इस आलेख को तैयार करने में अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।)    



                                       संग्रह एवं प्रस्तुति --                   राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली                   विकासखंड -जयहरीखाल           जनपद -पौड़ी गढ़वाल            उत्तराखंड।







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जैव विविधता पर अधिक जानकारी के लिए आप यह वीडियो देख सकते हैं

Special Pannel Discussion on Biodiversity 2021

सुनिए पर्यावरण दिवस 2021 के अवसर पर ये भाषण

सुनिए पर्यावरण दिवस पर यह भाषण

धन्यवाद जय हिन्द...