बेटी का सवाल
बेटी के मन में आया एक सवाल
मेरा घर कहां ?
अंगना मां बाप के पली
लाड प्यार से
सखियों संग खेली
हुई बड़ी
लाडली भाई बहनों की
कहते सब पराया धन
यह कैसी अबूझ पहेली ?
पूछ बैठी पिता से
आंखें भर प्यार से समझाया
लाडो है तू मेरी
रिवायत है दुनिया की बेटी
ससुराल ही घर तेरा
रख पाऊं सदा तुझे पास अपने
ऐसी मेरी औकात कहां
ससुराल में भी तो
बेगाने घर से आई कहलाऊंगी
उदास हुई बेटी मिला चैन नहीं
पुकारा प्रभु को
जगाया प्रभु को
किया यही सवाल
ए पालनहार बता
न यहां की न वहां की
मेरा घर कहां ?
पीहर या ससुराल ?
सुन ध्यान से प्रभु मुस्कुराए
आंसू अपने छुपाए
कहा बेटी
रचना मेरी अनमोल है तू
सूत्रधार दुनिया की - मेरे अहम की
कोई तुझे घर कैसे दे
यह इंसान के बस में नहीं
मुझसे पैदा अमूल्य रचना तू
रौनक तुम्हीं से जीवन तुम्ही से
ममता त्याग तुम्ही से
सहनशीलता निष्ठा तुम्ही से
मां बहन पत्नी प्रेयसी गुरु ममता
आदि अनंत तुम्ही से
नदी झरनों की कल कल
कोयल का मधुर संगीत
फूलों की खुशबू
जीवन धारा तुम्ही से
बेटी
इंसान को संवारने वाली
सृष्टि को निखारने वाली
रचना मेरी अनमोल है तू
घर बार तू बसाती
बस में कहां इंसान के
घर तुझे दे पाए
मेरी उम्मीद मेरा अभिमान तू
कण -कण जन्मा मुझसे
मेरे शरीर में समाई तू
देवी स्वरूपा है तू
दुनिया की जान है तू
रचना मेरी अनमोल है तू
रचना मेरी अनमोल है तू
मौलिक रचना
उदयवीर भारद्वाजq
भारद्वाज भवन
मंदिर मार्ग कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश
पिन 176001
मोबाइल 94181 87 726

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