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Saturday, 18 September 2021

स्वच्छता एवं साफ़ सफाई के मायने उत्तराखंड के बेह्तरीन अध्यापक श्री राजीव थपलियाल जी का लिखा यह लेख ऑन लाइन पत्रिका शिक्षा वाहिनी में|

 स्वच्छता के मायने साफ-सफाई  




विद्यार्थियों के संदर्भ में, यदि मैं बात करूं तो अक्सर हम लोग कक्षा-कक्ष में कहा करते हैं कि, यदि जीवन भर स्वस्थ और निरोगी रहना है तो अपनी स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना होगा। क्योंकि,साफ-सफाई हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह बात बिल्कुल सोलह आने सच  है कि, स्वच्छता हमारे जीवन की प्राथमिकता भी है और आवश्यकता भी। स्वच्छता जरूरी है क्योंकि साफ-सफाई से हम जीवन में आने वाली कई परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं। 
जहां तक मैं समझता हूँ,स्वच्छता का मूल अर्थ है साफ सफाई से रहने की आदत का निर्माण करना। सफाई से रहने से जहां शरीर स्वस्थ रहता है, वहीं स्वच्छता तन और मन दोनों को खुशी प्रदान कर चार चाँद लगा देती है। स्वच्छता जैसे गंभीर विषय को, सभी लोगों को अपनी दिनचर्या में अवश्य ही शामिल करना चाहिए।                                 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वच्छता के संबंध में अक्सर कहा करते थे कि- "स्वच्छता ही सेवा है और हमारे जीवन में स्वच्छता की बहुत जरूरत है"। गंदगी हमारे आसपास के वातावरण और जीवन को प्रभावित करती है। हमें व्यक्तिगत व अपने आसपास भी सफाई अवश्य रखनी चाहिए और दूसरों को भी इसके  लिये लगातार प्रेरित करते रहना चाहिये।                                  स्वच्छता के महत्व को हम कोविड-19 की कुछ घटनाओं से भी समझ सकते हैं।कोरोना काल में रोगियों की बढ़ती जनसंख्या एवं अस्पतालों में साफ-सफाई पर ध्यान देने की आवश्यकता से यह बात और भी स्पष्ट हो गई है कि, जीवन में स्वच्छता की कितनी जरूरत है। 
 स्वच्छता एक अच्छी आदत है जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है। यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। हमारे लिए शरीर की स्वच्छता  बहुत जरूरी है, जैसे रोज नहाना, स्वच्छ कपड़े पहनना, दांतों की सफाई करना, नाखून काटना, आदि। इसके लिए हमें प्रतिदिन सुबह जैसे ही हम सोकर उठते हैं, अपने दांतों को साफ करना चाहिए। चेहरा तथा हाथ पैर धोना चाहिए। साथ ही स्नानादि और दैनिक क्रियाओं को समय पर पूर्ण करना चाहिए।
यह तो हम सभी भली-भांति जानते ही हैं कि,स्वस्थ रहना शांति से जीवन जीने का एक बहुत ही अच्छा गुण है। इसके लिए घर के बड़े-बुजुर्गों और माता-पिता को अपने बच्चों में इस आदत को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वे स्वच्छता के महत्व को ठीक से समझ सकें।
 स्वच्छ भारत अभियान-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 02 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 145 वीं जयंती के मौके पर चलाया गया एक महत्वपूर्ण अभियान है। यह अभियान नई दिल्ली के राजघाट से शुरू किया गया था। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है और भारत सरकार द्वारा लगातार चलाया जा रहा है। वर्तमान समय में भी स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत कई योजनाएं शामिल की गई हैं, जिसमें ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों के घरों में शौचालाय निर्माण प्रमुख है।जिससे लोग अपने आस पास की स्वच्छता का महत्व समझेंगे और वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने में अपना लगातार योगदान देते रहेंगे।
स्वच्छता को लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कितनी दीगर बात कहा करते थे।
👉 1. महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी स्वच्छता है।
👉 2. यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता है।
👉 3. बेहतर साफ-सफाई से ही भारत के गांवों को आदर्श बनाया जा सकता है।
👉 4. शौचालय को अपने ड्रॉइंग रूम की तरह साफ रखना जरूरी है।
👉 5. नदियों को साफ रखकर हम अपनी सभ्यता को जिंदा रख सकते हैं।
👉 6. अपने अंदर की स्वच्छता पहली चीज है जिसे खूब बढ़ावा मिलना चाहिए। 
👉 7. हर व्यक्ति को अपने घर का कूड़ा प्रतिदिन खुद साफ करने का प्रयास करना चाहिए।
👉 8. मैं किसी व्यक्ति को गंदे पैर के साथ अपने मन से नहीं गुजरने दूंगा।
👉 9. महात्मा गांधी जी कहा करते थे कि ,अपनी गलती को सहर्ष स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है जो सतह को चमकदार और साफ कर देता है।
👉 10. स्वच्छता को अपने आचरण और व्यवहार में इस तरह अपना लो कि, वह आपकी बेहतरीन आदत बन जाए।


                                                   
चलिए अब हम एक और गंभीर पहलू पर्यावरण पर प्लास्टिक से होने वाले  खतरों के संदर्भ में भी थोड़ा-थोड़ा बातचीत कर लेते हैं। यह तो हम सभी लोग भली-भांति जानते ही हैं कि प्लास्टिक मानव जीवन में लगातार जहर घोल रहा है। मानव सुबह से लेकर शाम तक प्लास्टिक का उपयोग करता है,और इसे वरदान की तरह समझता है दरअसल यह हमारे पर्यावरण, पशु और हम सभी के लिए बहुत ही घातक है। प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए तथा आसपास के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए खूब सारे पेड़-पौधे लगाना बहुत ही आवश्यक है,और साथ ही प्लास्टिक बंद करने का आह्वान कर कुछ कानून बनाये जाने भी नितांत आवश्यक है ताकि प्लास्टिक के प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सके।
इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि, गंदगी से कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं जो मानव जीवन के विकास में बाधा डालती हैं। अत: जन-जन को यह समझना होगा कि, स्वच्छता हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। स्वच्छता को अपनाकर ही हम भविष्य में होने वाली बीमारियों को खत्म कर सकते हैं। 
स्वच्छता को बनाए रखने के लिए हमें इधर-उधर कचरा बिल्कुल भी नहीं फेंकना चाहिए। कचरा हमेशा संबंधित कूड़ेदान में ही फेंकना चाहिए। अंत में यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि, स्वच्छता को अपनायें और देश को आगे बढ़ायें। बेहतर साफ-सफाई से ही भारत के गाँवों को आदर्श बनाया जा सकता है। अत: स्वच्छता के लिए दूसरों को भी प्रेरित करते रहें तभी  हमारा राष्ट्र प्रगति के नए-नए सोपानों को तय कर सकेगा।
(नोट- इस आलेख को तैयार करने में अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।)              
                           

  संग्रह एवं प्रस्तुति --                  
 राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली           
 विकासखंड -जयहरीखाल          
 जनपद -पौड़ी गढ़वाल            
उत्तराखंड।

नशा एक सामाजिक कुरीति राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली द्वारा लिखा यह बेहतरीन लेख



 नशा एक सामाजिक कुरीति    

हम सभी लोग इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते ही हैं कि ,नशा हमारे समूचे समाज के लिए एक अभिशाप है । यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है । नशे के लिए समाज में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तम्बाकू और धूम्रपान (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चिलम) सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं और पदार्थों का उपयोग किया जा रहा है । इन जहरीले और नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचने के साथ ही, इससे सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता  जा रहा है, साथ ही नशा करने वाले की स्वयं की और पूरे परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को भी भारी नुकसान पहुंचता है। नशे के आदी व्यक्ति को समाज में अक्सर बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है । नशा करने वाला व्यक्ति कई बार परिवार के लिए बोझ स्वरुप हो जाता है, उसकी समाज एवं राष्ट्र के लिये उपादेयता लगभग शून्य हो जाती है । वह नशे से धीरे-धीरे अपराध की ओर अग्रसर होता चला जाता है तथा शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप बन जाता है। नशा अब एक अन्तराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गयी है । दुर्व्यसन से आज स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पा लेने में ही मानव समाज की भलाई है।जो इसके चंगुल में फंस गया वह स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ ही साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है। आज कल अक्सर ये देखा जा रहा है कि, युवा वर्ग इसकी चपेट में दिनों-दिन आ रहा है वह तरह-तरह के नशे जैसे- तम्बाकू, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट और शराब के चंगुल में फंसती जा रहा है। 
अपने आसपास नशा मुक्त समाज बनाने के लिए आम नागरिक को पूरी तरह से सहयोग करना चाहिए, ताकि इस अभियान को सफल बनाया जा सके। नशे के खिलाफ सामाजिक संस्थाओं और युवाओं को भी आगे आना चाहिये।पुलिस प्रशाशन  द्वारा नशे के दुष्परिणामों के बारे में गोष्ठियों का आयोजन कर लोगों को जागरूक करते रहना चाहिए।क्योंकि,नशा शब्द  सुनते ही मन में अजीब छटपटाहट और घबड़ाहट होने लगती है। 
नशा सेवन करना वस्तुतः एक राष्ट्रीय कलंक है। इससे अनेक प्रकार की सामाजिक कुरीतियाँ तेजी से अपने पाँव पसार रही हैं ।
नशा - सेवन शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार से घातक है । यह शरीर तथा मस्तिष्क को जर्जर कर देता है ।
अनेकों प्रकार के असाध्य रोगों का यह जन्मदाता एवं पोषक है।
कैंसर , टी ० वी ० , हृदय रोग आदि जैसे अनेक जानलेवा रोगों को नशा - सेवन आमंत्रित करता है।
सामाजिक जीवन को यह ध्वस्त कर देता है । नारी - उत्पीड़न पारिवारिक कलह , हत्या , आत्महत्या , झगड़े ,आपसी मारपीट, दंगे ,अपराध तथा अनेकों कुरीतियों एवं समाजविरोधी तत्वों को इससे अनावश्यक प्रोत्साहन प्राप्त होता है ।
बदलते सामाजिक परिवेश में यह भी देखने में आ रहा है कि ,नशा सेवन की यह कुप्रवृत्ति महिलाओं में भी तेजी से बढ़ रही है।इस दुर्व्यसन से राष्ट्र एवं समाज को व्यापक क्षति पहुंच रही है तथा उक्त बुरी लत भावी पीढ़ी को भी अपने चंगुल में ले रही है। अतः यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि, वर्तमान समय को देखते हुए,आवश्यकता इस बात की है कि, बढ़ती हुई इस कुप्रवृत्ति को , राष्ट्र एवं समाज के कल्याण के लिए , समूल नष्ट कर दें।
इस दिशा में हमें कई लाभकारी एवं सशक्त उपाय करने होंगे जैसे--
( i ) जागरूकता अभियान चलाना
( ii ) नशा का सार्वजनिक स्थलों पर सेवन पर पूर्ण रोक
( ii ) मादक पदार्थों की बिक्री पर रोक
( iv ) शासन द्वारा इस दिशा में ठोस कार्रवाई
( v ) नशेड़ियों तथा नशीले पदार्थों के तस्करों के साथ सख्त कानूनी कार्यवाही करना
( vi ) मादक - द्रव्यों के विज्ञापन पर पूर्ण रोक
( vii ) मादक - द्रव्यों से होने वाली हानियों तथा उसके घातक परिणामों से लोगों को अवगत कराना
( viii ) नशा - विमुक्ति कार्यक्रम द्वारा लोगों को नशा - सेवन से मुक्त कराकर नवजीवन प्रदान करना।
                                                 
 यह उत्साहवर्द्धक एवं हर्षपूर्ण बात है कि, सरकार इस दिशा में पूर्ण सक्रियता दिखा रही है । अनेक समाजसेवी एवं स्वयंसेवी संगठन भी इस दिशा में पर्याप्त योगदान कर रहे हैं।अनेक नशा -विमुक्ति केन्द्रों की स्थापना द्वारा नशा - सेवन करने वालों को उससे मुक्त कराने के अभियान द्वारा उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है।
नशा - सेवन के प्रति आकर्षण समाप्त कर अरूचि पैदा करने के लिए उपयुक्त औषधियों का सेवन कराया जा रहा है।
युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए इतना सब कुछ किए जाने के बाद, उम्मीद है कि, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, हमारी युवा पीढ़ी अपने चरमोत्कर्ष की ओर अग्रसर हो सकेगी और नशा मुक्त स्वच्छ और सशक्त भारत का निर्माण करने की ओर अग्रसर हो सकेगी।                                                

(नोट- इस आलेख को तैयार करने में इंटरनेट तथा अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।)                                           
संग्रह एवं प्रस्तुति --                  
 राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र- मठाली                   
विकासखंड -जयहरीखाल          
 जनपद -पौड़ी गढ़वाल           
 उत्तराखंड।

Saturday, 4 September 2021

पढ़िए उत्तराखंड के बेहतरीन शिक्षक राजीव थपलियाल जी का डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी पर लिखा यह लेख

आदर्श शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (जन्म दिवस 05 सितंबर पर विशेष) ............................................................................नई-नई सुखद अनुभूतियाँ, कितना प्यारा - प्यारा। अनुपम स्नेह की झांकी में, बीते शिक्षक दिवस हमारा। महान शिक्षाविद, दार्शनिक और स्वतंत्र भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 05 सितंबर सन 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिरुतणी नामक ग्राम में हुआ था। प्रखर वक्ता तथा दार्शनिक स्वभाव के आस्थावान विचारक ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षण कार्य में व्यतीत किये। इस महान विभूति में एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे। यदि इनके सफरनामे पर, एक दृष्टि डाली जाए तो हम देख पाते हैं कि, सन 1952 से 1962 तक वे देश के उपराष्ट्रपति तथा 1962 में ही राष्ट्रपति बने, इसी दौरान उनके कुछ शिष्यों और प्रशंसकों ने उनसे निवेदन किया कि, वे सभी लोग डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं।तो इस संबंध में उन्होंने कहा कि, मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चित ही मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस करूँगा। तब से हर साल 05 सितंबर का दिन समूचे भारतवर्ष में शिक्षक दिवस के रूप में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस महान विभूति का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।कुशल प्रशासक जाने-माने विद्वान देशभक्त और उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्री के रूप में इस महान विभूति की गिनती देश-विदेश में होती है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सारे विश्व को एक शिक्षालय मानते थे उनकी मान्यता थी कि, शिक्षा के द्वारा ही मानव के दिमाग का सही ढंग से सदुपयोग किया जाना संभव है। अतः समस्त विश्व को एक इकाई समझ कर ही शिक्षा का प्रबंधन किया जाना चाहिए। एक बहुत खास बात डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के व्यक्तित्व में यह थी कि, वे अपनी गुदगुदाने वाली कहानियों बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे, और दर्शनशास्त्र जैसे गंभीर विषय को अपनी बेहतरीन और लाजवाब शैली से सरल और रोचक बना देते थे। महान दार्शनिक की उपलब्धियाँ 👉 रूस में भारत का राजदूत रहते हुए विश्व के विभिन्न देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये। 👉-वॉल्टियर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। 👉 वर्ष 1939 से 1948 तक बीएचयू के चांसलर रहे। 👉 सन 1948 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।इसके अलावा डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,प्रथम भारतीय के रूप में ब्रिटिश अकादमी के लिए भी चुने गए। 👉कई वर्षों तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे,साथ ही कोलकाता विश्वविद्यालय के जॉर्ज पंचम कॉलेज में भी प्रोफेसर रहे। 👉इन सभी उपलब्धियों को देखते हुए वर्ष 1954 में इस महान विभूति को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 👉 1961 में इन्हें जर्मनी के एक पुस्तक प्रकाशन द्वारा विश्व शांति पुरस्कार से नवाजा गया। 1975 में इन्हें टेंपलटन पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। कुल मिलाकर इस महान शिक्षाविद के जीवन का सफर बहुत जानदार, शानदार और प्रेरणादायक रहा। शिक्षक दिवस के बेहतरीन मौके पर इस महान शिक्षा शास्त्री को हमारा शत-शत नमन, कोटि-कोटि प्रणाम। पूरे विश्व में शिक्षा का दीपक जलाते- जलाते इस महान विभूति का पार्थिव शरीर 17 अप्रैल 1975 को पंचतत्व में विलीन हो गया। कर्मठता और भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक के रूप में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सदैव स्मरणीय रहेंगे। इस महान व्यक्तित्व के साथ-साथ समूचे शिक्षक समाज को चंद पंक्तियां समर्पित करना चाहूंगा----.... सदाबहार फूलों सा खिलकर, महकता और महकाता शिक्षक।। रोज नए प्रेरक आयाम लेकर, हर क्षण रोचक बनाता शिक्षक।। ढेर सारा ज्ञान पल भर में देकर, खूब खिलखिलाता शिक्षक।। देश के लिए सब कुछ करने की, हर राह दिखाता शिक्षक।। प्रकाश पुंज बनकर हर समय, अपना शिक्षक धर्म निभाता शिक्षक।। आदर्शों की मिसाल बनकर, बाल जीवन संवारता शिक्षक।। ................................इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि, शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व माना जाता है। कहा जा सकता है कि, शिक्षक समाज का आईना होता है शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है। जो सभी को ज्ञान देता है, और जिसका योगदान,किसी भी राष्ट या देश के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायने में यदि,देखा जाए तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है और शिक्षक ही समाज की आधारशिला है।माता पिता अपने बच्चे को जन्म देते हैं,लेकिन एक शिक्षक ही है जिसे हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दर्जा दिया गया है, क्योंकि शिक्षक ही हमें समाज में रहने योग्य बनाता है।विद्यार्थी के मन में पनपने वाले हर सवाल का जवाब देता है, और विद्यार्थी को सही सुझाव देता है, सही मार्गदर्शन करता है, और जीवन में आगे बढ़ने के लिए हर समय प्रेरित करता रहता है। एक शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है।अतः यहाँ पर यह कहना समीचीन होगा कि,एक शिक्षार्थी को अपने गुरु के प्रति सदा आदर और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं हो जाता,उसे नित नये आयाम प्रतिपादित करते हुए अपने चर्मोत्कर्ष की ओर अग्रसर होते रहना चाहिए, क्योंकि समाज में शिक्षक का ही ऐसा व्यक्तित्व होता है,जो सभी को सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए लगातार प्रेरित करता रहता है।तभी तो प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। किसी भी देश या राष्ट्र के विकास में एक शिक्षक द्वारा अपने शिक्षार्थी को दी गई शिक्षा और शैक्षिक विकास की भूमिका का अत्यंत महत्व है। हम सभी गुरुजनों को सदैव अपने जीवन में उच्च आदर्श जीवन मूल्यों को स्थापित कर,आदर्श समाज का निर्माण करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। शिक्षक दिवस के इस शानदार मौके पर मैं एक महत्वपूर्ण बात स्पष्ट करना चाहूँगा कि,सर्वप्रथम तो मैं अपने माता-पिता का अत्यधिक ऋणी हूँ जिन्होंने मुझे भारत वसुंधरा में जन्म देकर यह सुनहरा संसार दिखाया। और साथ ही मैं अपने उन सभी गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ जिनके सानिध्य में रहकर मैंने अपनी ज्ञान पिपासा को शांत किया।मैं हृदय की गहराइयों से धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूँगा उन सभी गुरुजनों और शुभचिंतकों का जिन्होंने मेरी इस शैक्षिक यात्रा में अपने दुलार ,प्यार और सहानुभूति से, मुझे सर्पणी की भांति रेंगती हुई पगडंडियों के ऊपर से बड़ी सहजता और शालीनता के साथ चलना सिखाने और मुझे इस काबिल बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया। अंत में मैं ,आप सभी विद्वान गुरुजनों के सम्मान में कुछ पंक्तियां समर्पित करना चाहूँगा। गुरुदेव......... जीवन के हर अंधेरे में, रोशनी दिखाते हैं आप। बंद हो जाँय जब,सब दरवाजे, नये-नये रास्ते दिखाते हैं आप। सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं, जीवन जीना भी सिखाते हैं आप। ..................................... संग्रह एवं प्रस्तुति ------------------ राजीव थपलियाल प्रधानाध्यापक राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा संकुल केंद्र--मठाली विकासखंड-- जयहरीखाल जनपद-- पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।